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Saturday, August 21, 2010

किसी एक स्थान पर राहू एवं चंद्रमा की स्थिति हो तो ग्रहण चंद्र योग


योगों से कई प्रकार की ग्रह स्थिति का परिणाम बदल जाता है। इनके प्रभाव अत्यंत प्रबल होने के साथ ही जीवन को बहुत प्रभावित करते हैं। इन्हीं योगों में ग्रहण योग बहुत साधारण होकर भी विशेष प्रकार से असरकारी है।

जन्म
पत्रिका में किसी एक स्थान पर राहू एवं चंद्रमा की स्थिति हो तो ग्रहण चंद्र योग बनता है। इसमें भी राहू एवं चंद्रमा के अंशों में नौ अंश से कम का अंतर हो तो ग्रहण योग बनता है, परंतु नौ अंश से अधिक के फासले पर यह योग प्रभावकारी नहीं होता है।

यदि
दोनों ग्रहों की दूरी सात अंश से कम की हो तो इस योग का फल अधिक पड़ता है। राहू, चंद्रमा का अंतर डेढ़ अंश से कम होने पर यह योग पूर्ण प्रभावकारी रहता है। यह योग

प्रथम भाव में हो तो खर्च दोष, दाँत का देरी से आना एवं धन संचय का योग बनता है।

द्वितीय भाव में खुद के परिश्रम से धन प्राप्त करना, खाने के शौकीन होना एवं बचपन में कष्ट पाने का योग बनता है।

तृतीय स्थान में राहू-चंद्र की युति से शांत प्रकृति वाले, प्रसिद्धि पाने वाले एवं दाहिने कान में तकलीफ की संभावना आती है।

 चतुर्थ स्थान में जन्मभूमि से दूर जाना पड़ता है, मेहनत से प्रगति करते हैं। दान की प्रवृत्ति अधिक होती है।
 पंचम स्थान का ग्रहण जातक को बुद्धिमान, ईश्वर भक्त और कामी बनाता है।

 छठे भाव में शरीर निरोगी रहता है। शत्रु बहुत उत्पन्न होते हैं, लेकिन जल्दी ही समाप्त हो जाते हैं। मातृपक्ष की चिंता होती है।

सप्तम भाव में ग्रहण योग दाम्पत्य जीवन को अच्छा करता है। व्यापार में हानि का योग बनता है, पलायनवादी दृष्टिकोण को जन्म देता है।

आठवें स्थान में राहू-चंद्र की युति से अल्पायु में प्रसिद्धि मिलती है, स्त्री से धन प्राप्त होता है, आर्थिक हानि उठाना पड़ती है।

नौवें घर में संतान की प्रगति होती है, लंबे प्रवास का योग बनता है, धार्मिक कार्य करते हैं और आलस्य आता है।

दशम
भाव में योगी, हल्का व्यापार करने वाला एवं सामाजिक कार्य में संलग्नता का फल देता है।

ग्यारहवें स्थान में चंद्र-राहू की युति काम से प्रसिद्धि दिलाती है। अनैतिक तरीके से धन एकत्र करने पर परेशानी उठाना पड़ती है। आँख या कान के रोग उत्पन्न होते हैं।

बारहवें स्थान में इस योग का फल कुशल व्यवसायी के रूप में मिलनसारिता के रूप में एवं दाम्पत्य जीवन में तनाव की स्थिति उत्पन्न करता है।

Saturday, August 7, 2010

मंगल का परिभ्रमण और कुंडली के बारह भावो पर प्रभाव

नौ ग्रह कुंडली पर जब परिभ्रमण करते हैं तो जातक को शुभ-अशुभ फल देते हैं। भौम चंद्र कुंडली अनुसार जब भ्रमण करता है तो प्रत्येक भाव (स्थान) पर अलग-अलग फल देता है। जानिए।

प्रथम भाव में : परिजनों से द्वेष कराता है। रोग, आर्थिक तंगी, राज्याधिकारी से कष्ट तथा आयु की कमी करता है।

द्वितीय भाव में : शत्रुओं में वृद्धि एवं शत्रुओं से नुकसान कराता है। अधिक खर्च, धन की कमी एवं मानसिक परेशानी देता है।

तृतीय भाव में : धनागमन कराता है एवं स्वास्थ्य में लाभ देता है। इच्छाओं की पूर्ति करता है तथा मान-सम्मान में बढ़ोतरी कराता है। भौतिक सुख बढ़ाता है।

चतुर्थ भाव में : दुश्मनों की बढ़ोतरी, बीमारी। परिवार से एवं समाज से मान-सम्मान कम कराता है।

पंचम भाव में : कष्टकारक होता है। रोग के साथ हानि एवं रिश्तेदारों से कष्ट देता है।

षष्टम भाव में : शत्रुओं पर विजय दिलाता है। कार्य में सफलता देता है। मान-सम्मान की वृद्धि कराता है। धनागमन के रास्ते बनाता है एवं भौतिक सुख-सुविधाएँ देता है।

सप्तम भाव में : पत्नी से कलह कराता है। अनेक प्रकार के रोग एवं आर्थिक तंगी देता है। मित्रों से झगड़ा करवाता है। सतर्क रहकर कार्य करें।

अष्टम भाव में : बीमारी के साथ कमजोरी देता है एवं धन की हानि करता है। व्यापार कम होता है।

नवम भाव में : अस्त्र-शस्त्रों से चोट पहुँचाता है। जब भी नवम भाव में हो तो यात्रा भी कष्टप्रद होती है। सम्मान में कमी होती है। धन की हानि करता है। नवम भाव के भ्रमण में भी दुर्घटना करा सकता है लेकिन 15 डिग्री पर रहने से शुभ फल देता है।

दशम भाव में : प्रत्येक कार्य में असफलता देता है। बीमारी देता है। वाहन न चलाएँ अथवा बचें।

एकादश भाव में : आर्थिक सुदृढ़ता देता है एवं जातक को जमीन, जायदाद दिलाता है। भौतिक सुख में वृद्धि कराता है।

द्वादश भाव में : खर्च में बढ़ोतरी के साथ परेशानी देता है। पत्नी से झगड़े एवं मानसिक कष्ट देता है। कभी दूसरी औरतों से कष्ट भी देता है। रिश्तेदारों से मनमुटाव एवं सम्मान में कमी कराता है।

उपाय एवं निदान : मंगल जब अशुभ फल दे तो सरलतम उपाय करें। मंगलवार के दिन ताँबा, स्वर्ण, केसर, मूँगा, लाल वस्त्र, लाल चंदन, लाल फूल, गेहूँ, घी, मसूर की दाल इत्यादि वस्तुएँ सूर्योदय के समय या सूर्योदय से 2 घंटे के बीच शिव मंदिर में दान करें या ब्राह्मण को दें। इसी के साथ ॐ अंगारकाय नम: के 11000 जाप कराएँ।

शुक्र का परिभ्रमण और कुंडली के बारह भावो पर प्रभाव

शुक्र ग्रह जब चंद्र कुंडली में परिभ्रमण करता है तो जातक को अलग-अलग भाव में अलग-अलग शुभ-अशुभ प्रभाव देता है। देखें किस भाव में क्या प्रभाव देता है एवं क्या किया जाए।
प्रथम भाव में : वैवाहिक जीवन का आनंद देता है। विद्या में पूर्णता एवं बच्चे का जन्म देता है। नए पद की प्राप्ति होती है तथा पूर्ण मनोरंजन देता है।
द्वितीय भाव में : धन की प्राप्ति देता है, परिवार की बढ़ोतरी, बच्चे का जन्म एवं अविवाहित का विवाह तथा शुभ कार्य कराता है।
तृतीय भाव में : पद की प्राप्ति तथा प्रभुत्व बढ़ाता है एवं जातक को धन की प्राप्ति देता है।
चतुर्थ भाव में : प्रभाव व प्रभुत्व को बढ़ाता है। जातक को धन की प्राप्ति देता है। अच्छे व्यक्ति से मित्रता कराता है। अविवाहित का विवाह कराता है एवं कार्य क्षेत्र से धन की प्राप्ति देता है।
पंचम भाव में : विवाहित दम्पति को बच्चे का सुख देता है। शत्रुओं का नाश कराता है। बड़े अधिकारियों से सम्मान एवं समाज में मान-सम्मान में बढ़ोतरी देता है।
षष्टम भाव में : मानहानि कराता है। खर्च में बढ़ोतरी देता है एवं राज्य से नौकरी से खतरा बनाता है।





सप्तम भाव में : किसी से गलत संबंध कराता है। पत्नी को बीमार एवं नीच प्रवृत्ति के लोगों से संबंध कराता है। स्त्री द्वारा धनहानि तथा गृहस्थी में तनाव देता है।
अष्टम भाव में : स्वास्थ्य ठीक रखता है एवं धन लाभ देता है। इसी के साथ जमीन, जायदाद की प्राप्ति होती है।
नवम भाव में : मानहानि तथा शारीरिक सुख देता है एवं भौतिक सुख की पूर्णता कराता है। गृहस्थ सुख देता है।
दशम भाव में : कष्टप्रद जीवन एवं तनाव देता है, लेकिन दोस्तों के सहयोग से अपने कार्य करवाता है।
एकादश भाव में : पूर्ण भौतिक सुख देता है। विपरीत लिंग से संबंध बनवाता है। मानसिक सुख एवं आर्थिक सम्पन्नता देता है।
द्वादश  भाव में: सामान्य फल देता है। बेरोजगारों को रोजगार दिलाता है।
सुझाव व उपाय : शुक्र अशुभ फल दे तो शुक्रवार के दिन किसी कन्या को या एक आँख वाले व्यक्ति को सफेद कपड़ा, चावल, शक्कर, दही, सफेद चंदन, अमेरिकन डायमंड का दान किसी ब्राह्मण से कराएँ या स्वयं करें।
ॐ द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नम: 36000 जाप कराएँ।

सम्पादकीय ( समीर चतुर्वेदी ) 07/08/2010

आखिरकार हजारों करोड़ के सर्कस यानी  कोमनवेल्थ खेलो की पोल खुलनी शुरू हो ही गयी !करोड़ों रूपये के घोटाले के आरोप सामने आ रहे हैं ! कहीं बिना काम का कमीशन दिए जाने की बात हो रही है तो कहीं सामान के मूल्य से ज्यादा उसका किराया दिए जाने का मुद्दा है !दरअसल घोटाले की बू तो तभी से आने लगी थी जब इन खेलो के नाम पर जनता से अंधी वसूली की गयी थी ! और हमारी  मुख्यमंत्री ताल ठोक कर कह रहीं थी की यदि सुविधा से रहना है तो खर्चा तो होगा ही  ! वहीँ दूसरी ओर देश की इज्ज़त का हवाला दिया जा रहा था की ये खेल भारत की शान है !दिल्ली का मान बढेगा इन खेलो से! पता नहीं लोग क्यों चीख पुकार मचा रहे हैं ? बल्कि लोगो को तो गर्व होना चाहिए हमारे नेताओ पर !  घोटालो मैं अव्वल नंबर पर ला खड़ा कर दिया है हमारे देश को ! आखिर कहीं तो देश को ऊपर के पायदान पर होना चाहिए !
                       इन खेलो की आड़ मैं भ्रष्टाचार  का नंगा खेल खेला गया वो भी पूरी बेशर्मी के साथ !जैसे जैसे कोमनवेल्थ गेम्स करीब आते जा रहे हैं वैसे वैसे  इस से जुड़े नए नए आर्थिक  घोटालों के भी खुलासे होते जा रहे  हैं|एक तरफ  तो कोमनवेल्थ के नाम पर करोड़ों अरबों रूपया पानी की तरह बहाया जा रहा है|लेकिन उसी के एवज में मंत्री,नेता तथा उस से जुड़े अधिकारी भी अपने जेबें भरने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं| आखिर ऐसी क्या बात थी जो सरकार के ही एक मंत्री ने इन खेलो पर सवाल खड़े कर दिए ? यूपीए सरकार में पूर्व खेल मंत्री एवं राज्यसभा सदस्य रहे मणि शंकर अय्यर ने अपने एक वक्तव्य में यह तक कह डाला कि इन खेलों का संरक्षण “भगवान नहीं बल्कि शैतान’ करेगा, और ‘जो लोग खेलों का संरक्षण कर रहे हैं, शैतान ही हो सकते हैं,आखिर क्यों मणिशंकर अय्यर इतना तिलमिला गए की उन्होंने इन खेलो का बेडा गर्क होने की बात तक बोल दी !उन्होंने यह भी कहा कि अगर यह खेल सफल रहते हैं तो वह ‘नाखुश’ होंगे.आज देश के केन्द्रीय सतर्कता आयोग ने कोमनवेल्थ प्रोजेक्ट में करोडो  के घोटाले का भंडाफोड़  कर दिया है! यदि केन्द्रीय सतर्कता आयोग ऐसा नहीं करता तो शायद किसी को भनक भी नहीं लगती और जनता की गाढ़ी कमाई पर ये नेता और सरकारी गिद्ध हाथ साफ़ कर जाते और दुआ मनाते  की ये खेल हमारे देश मैं हर साल हों !
                    चलिए मानते हैं की सरकार ने पूरी ईमानदारी से काम किया और सभी लोग देश की इज्जत बढ़ाने में लगे थे , पर ये बात गले नहीं उतरती की नागपुर में नया स्टेडियम बनाने में खर्चा आया महज  चौरासी करोड़ रूपये लेकिन वहीँ दिल्ली के जवाहर लाल नेहरु स्टेडियम जो की पहले से तैयार है उसकी मरम्मत पर खर्चा हुआ  726 करोड़ रूपये ! आखिर उस मरम्मत में ऐसा क्या करवाया गया जो की 10 नए स्टेडियम बनाने का खर्चा एक को ही सजाने में लगा दिया गया ! उस पर भी बड़ी दिलेरी के साथ कहा जा रहा है की सब कुछ ठीक है ! कहीं कोई बेईमानी नहीं हुई ! सरकार में रहते हुए भी मणिशंकर का कहना है की इन खेलो की मेजबानी लेने के लिए भारत ने दुसरे राष्ट्रकुल देशो को लाखो डॉलर की रिश्वत दी है ! लंदन में हुए बैटन रिले समारोह के लिए एएम फिल्म्स नामक एक कंपनी को बिना किसी कॉन्ट्रैक्ट के भुगतान किया गया था. ब्रिटिश सरकार ने एएम फिल्म्स को मोटी रकम ट्रांसफर किए जाने पर सवाल उठाए थे.यह भी कहा गया कि इस कंपनी को हर महीने कॉस्ट्यूम डिजाइन के लिए 25,000 पाउंड दिए गए. इस घोटाले ने हमारे देश की छवि न केवल भारत में बल्कि पूरे संसार में धूमिल कर दिया  है.यदि विपक्ष आरोप लगाता तो शायद इस बात को सोचा जा सकता था पर सत्ता पक्ष के ही लोग इस पर उंगलियाँ  उठा रहे हैं ! यानी दाल में  काला नहीं सारी दाल ही काली है !
                                               आज कॉमनवेल्थ गेम्स का बजट निर्धारित बजट से 20 गुना बढ़ गया है जिसका मुख्य कारण कॉमनवेल्थ गेम्स समिति के लोगों द्वारा की गई घूसखोरी और धांधली है. घूसखोरी और धांधली का आलम यह था कि अगर कोई बड़ा लुटेरा  भी हो तो वह भी शर्मा जाए . एक विदेशी कंपनी की सेवाएं ली गयी थी स्पोंसर लाने के लिए , वो स्पोंसर तो ला नहीं पायी अलबत्ता उसे पचास करोड़ रूपये का भगतान जरूर कर दिया गया ! ये भुगतान किस आधार पर किया गया ये कलमाड़ी साहब ही बेहतर बता सकते है !कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए काफी   निर्माण किया जाना था जिसके लिए बहुत सारे टेंडर भी आए परन्तु किसी को नहीं पता कि टेंडर कब खुले और किसको मिले. इसके अलावा बहुत सारा सामान भी खरीदा गया जो ज़रुरी भी था लेकिन जो सामान खरीदा गया वह कई  गुना अधिक दामो में ख़रीदा गया ! इधर सुरेश कलमाड़ी का कहना है की यदि प्रधानमंत्री या सोनिया गांधी कहें तो वे इस्तीफा दे देंगे ! अब कोई कलमाड़ी साहब से पूछे की जो पैसा घोटाले में चला गया वो प्रधान मंत्री का था या सोनिया जी का जो आप सिर्फ उनके कहने भर से इस्तीफा दे देंगे ! मजे  की बात ये है की कलमाड़ी पर ही आरोप लग रहे हैं और उन्होंने ही अपने आदमी नियुक्त करके इसकी जांच शुरू कर दी है इस जांच की क्या रिपोर्ट आएगी सबको पहले ही  पता है

                                                        
सरकार तो  घोटाले की छानबीन के लिए एक और समिति बना देगी, जो अगले कई  सालों तक छानबीन ही करती रहेगी न्याय का तो सवाल ही नहीं. परतु इन सब में पिसेगा कौन – केवल आम आदमी. आम जनता को तो सिर्फ खुशहाल जिंदगी चाहिए जो उसे इस महंगाई के दौर में नसीब नहीं है. बस तो आप लोग घोटाला भूल के अपने दिए गए पैसो का सर्कस देखिये !

Friday, August 6, 2010

लाभकारी है पन्ना धारण करना

पन्ना बुध ग्रह का रत्न है। इसे अनेक नामों से जाना जाता है जैसे संस्कृत में मरकत मणि, फारसी में जमरन, हिन्दी में पन्ना और अँग्रेजी में एमराल्ड। यह गहरे से हल्के हरे रंग का होता है। यह अधिकतर दक्षिण महानदी, हिमालय, गिरनार और सोम नदी के पास पाया जाता है। इस रत्न को धारण करने वाला सौभाग्यशाली होता है।
पन्ना मुख्यतः पाँच रंगों में पाया जाता है। तोते के पंख के समान रंग वाला, पानी के रंग जैसा, सरेस के पुष्प के रंगों वाला, मयूरपंख जैसा और हल्के संदुल पुष्प के समान होता है। पन्ना अत्यंत नरम पत्थर होता है तथा अत्यंत मूल्यवान पत्थरों में से एक है। रंग, रूप, चमक, वजन, पारदर्शिता के अनुसार इसका मूल्य निर्धारित होता है।
यह रत्न 500 रुपए कैरेट से 5 हजार रुपए कैरेट तक आता है। इस रत्न को धारण करने से अनिश्चितता निश्चितता में बदल जाती है। विद्यार्थी वर्ग यदि पन्ना पहने तो बुद्धि तीक्ष्ण बनती है। यह रोगियों के लिए बलवर्धक, आरोग्यदायक एवं सुख देने वाला होता है। जिस घर में यह रत्न होता है, वहाँ अन्न-धन की वृद्धि, सुयोग्य संतान तथा भूत-प्रेत की बाधा शांत होती है। सर्प भय नहीं रहता। नेत्र रोगों में भी यह अत्यंत लाभकारी होता है। इस रत्न को पाँच मिनट तक प्रातः एक गिलास पानी में घुमाएँ फिर आँखों पर छिटका जाए तो नेत्र रोग में फायदा होता है।
* पन्ना यदि मिथुन लग्न वाले धारण करें तो पारिवारिक परेशानियों से राहत मिल सकती है। माता का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। जनता से संबंधित कार्यों में सफलता मिलेगी।
* कन्या लग्न वाले व्यक्ति भी पन्ना पहनकर राज्य, व्यापार, पिता, नौकरी, शासकीय कार्यों में लाभ पा सकते हैं। यदि कन्या लग्न वाले बेरोजगार हैं, तो रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।
* यदि किसी के जन्म लग्न में बुध 6, 8, 12वें भाव में हो तो वे पन्ना पहन सकते हैं।
* बुध यदि नीच मीन राशि का हो तो वह भी पन्ना पहन सकते
* यदि बुध धनेश होकर नवम भाव में हो, तृतीयेश होकर दशम भाव में हो, चतुर्थेश सुखेश होकर आय एकादश स्थान में हो तो पन्ना पहनना अत्यंत लाभकारी होता है।
* बुध यदि सप्तमेश होकर दूसरे भाव में हो नवमेश होकर चतुर्थ भाव में हो, एकादशेश होकर छठे भाव में हो तो पन्ना अवश्य पहनना चाहिए।
* यदि बुध शुभ स्थान का स्वामी होकर अष्टम भाव में हो तो पन्ना पहनना शुभ रहता है।
* यदि बुध की महादशा या अंतरदशा चल रही हो तो पन्ना अवश्य पहनें।
* यदि जन्म कुंडली में शुभ भाव 2, 3, 4, 5, 7, 9, 10 , 11वें भाव का स्वामी होकर छठे भाव में हो तो पन्ना पहनना श्रेष्ठ रहेगा।
* यदि बुध, मंगल, शनि, राहू या केतु के साथ स्थित हो तो पन्ना अवश्य पहनना चाहिए।
* यदि बुध पर शत्रु ग्रहों की दृष्टि हो तो पन्ना अवश्य पहनना चाहिए।
* बुध यदि लग्नेश होकर चतुर्थ, पंचम या नवम भाव में शुभ ग्रहों के साथ हो तो पन्ना हितकर रहेगा।
पन्ना उन व्यक्तियों को भी पहनना चाहिए जो व्यापारी हों, गणित से संबंधित कार्य करने वाले हों या सेल्समैन हों। ऐसे व्यक्तियों को पन्ना उत्तम प्रभाव देकर लाभान्वित करेगा।
पन्ना बुधवार के दिन अश्लेषा, ज्येष्ठा या रेवती, नक्षत्र हो उस दिन सूर्योदय से लगभग 10 बजे तक पन्ना पहन सकते हैं। पन्ना सदैव स्वर्ण की धातु में शुभ घड़ी में बनाकर ही पहनें। पन्ना कम से कम 3 कैरेट का होना चाहिए व उससे अधिक हो तो उत्तम रहेगा।

बृहस्पति का परिभ्रमण और बारह भावो पर उसका परिणाम

चंद्रमा कुंडली के अनुसार जब बृहस्पति परिभ्रमण पर रहते हैं तो किस स्थान पर क्या परिणाम देते हैं एवं उससे क्या लाभ या हानि होती है। आइए जानें-

प्रथम : आर्थिक कष्ट, चिंताएँ घेरती हैं और यात्राएँ होती हैं। रिश्तेदारों से मनमुटाव कराता है।
पृथक से द्वितीय स्थान : घर में खुशी का समावेश होता है। शत्रुओं का नाश कराता है। अविवाहित का विवाह और गृहस्थी वाले के यहाँ बच्चे का जन्म, धनप्राप्ति कराता है अर्थात पूर्ण सुख देता है। 

तृतीय : धन की कमी कराता है। रिश्तेदारों से कटुता और कार्य में असफलता दिलाता है। यात्रा में नुकसान, बीमारी और स्थान परिवर्तन होता है। 
चतुर्थ : किसी मित्र या रिश्तेदार से अपमानित कराता है। जातक को गलत कार्य के लिए प्रेरित करता है। साथ ही चोर का भय होता है।
 पंचम : राजकार्य में सफलता दिलाता है। उच्च अधिकारियों से सम्मान मिलता है। जातक को नए पद की प्राप्ति (पदोन्नति) दिलाता है। बेरोजगार को नौकरी, पुत्र की प्राप्ति होती है। घर में शुभ कार्य होता है। जमीन-जायदाद और अन्य प्रकार के वैभव, विलासिता की वस्तुओं की खरीदी करवाता।
 षष्ठम : घर में झगड़े करवाता है और कष्ट देता है। रिश्तेदारों से मनमुटाव की स्थिति उत्पन्न होती है। धनहानि, खर्च बढ़ाता है।
 सप्तम : पारिवारिक खुशियाँ देता है। शादी व नए संबंध कराता है। धन की प्राप्ति देता है। नए विषय का ज्ञान देता है। वाहन सुख तथा बच्चे का जन्म होता है।
अष्टम : अशुभ होता है। घर कलह, शारीरिक कष्ट, मानसिक तनाव आदि कई प्रकार के कष्ट देता है। 
नवम : जातक को ज्ञानवृद्धि कराता है। कार्य करने की क्षमता बढ़ाता है। यानी कर्म करने की प्रेरणा जगाता है। 
दशम : बीमारी, धनहानि तथा कष्ट देता है। स्थान परिवर्तन कराता है। जायदाद का नुकसान देता है तथा जीवन कष्टमय कर देता है।
 एकादश : जीवन में खुशियाँ देता है। पूर्ण तंदुरूस्ती एवं धन की प्राप्ति कराता है। भूमिहीन को भूमि दिलाता है। मकान भी देता है। संतान की प्राप्ति भी कराता है। अविवाहित का विवाह होता है। 
द्वादश : कष्टप्रद जीवन देता है। मानसिक और शारीरिक तथा बौद्धिक कष्ट देकर तनाव से युक्त कर देता है। 

शनि का परिभ्रमण:-और बारह भावो पर उसका परिणाम


शनि जब चंद्र कुंडली में परिभ्रमण करता है तो क्या फल देता है और क्या संभावनाएँ रहती हैं, जानिए।

प्रथम : ‍शनि का चंद्रकुंडली के प्रथम स्थान में भ्रमण नजदीकी रिश्तेदारों के लिए अशुभ रहता है। बीमारी के योग रहते हैं।

द्वितीय : शनि चंद्रकुंडली के दूसरे भाव में जब प्रवेश करता है तो खुशियों में कमी आ सकती है। बीमारी हो सकती है। यह धनहानि कराता है। नौकरीपेशा निलंबित या पदविहीन हो सकता है। खर्च को बढ़ाता है। स्वास्थ्य कमजोर रह सकता है।
तृतीय : इस भाव में शनि आने के आने पर धनोपार्जन करवाता है। खुशियाँ देता है।
चतुर्थ : यह भाव मानसिक, शारीरिक कष्ट और परिवार के लिए अशुभ फल देता है। अनहोनी घटनाएँ होती हैं।
पंचम : इससे धननाश, खर्च में बढ़ो‍तरी हो सकती है। गलत आक्षेप लगवा सकता है।
षष्ठम : शत्रुओं पर विजय दिलवाता है। मुख्य कार्य करवाता है और बीमारी से दूर रखता है। बीमार व्यक्ति बीमारी से मु‍क्त हो जाता है। वैवाहिक जीवन में सुख देता है और धन की प्राप्ति कराता है।
सप्तम : इस भाव में शनि यात्राएँ कराता है। जातक घर से दूर रहता है, परंतु उसे गुप्त रोग या जननांग में बीमारी होने का भय रहता है।
अष्टम : यह भाव पत्नी और बच्चों से दूर कर सकता है। कभी-कभी तलाक भी दिला देता है। (अर्थात किसी जातक की निम्न राशि पर विराजे तब)। इसके अतिरिक्त रिश्तेदारों और नौकरों से कष्ट तथा धनहानि देता है।
नवम : यह भाव शत्रुओं से हानि, किसी आपराधिक व्यक्ति द्वारा कष्ट, बीमारी, धनहानि पत्नी से अलगाव कराता है।
दशम : शनि के इस भाव में बेरोजगार व्यक्ति को रोजगार प्राप्त हो जाता है, लेकिन किसी-किसी जातक को कार्य से सुकमय बाधाएँ उत्पन्न होती हैं।
एकादश : यह भाव जमीन-जायदाद की प्राप्ति कराता है। अविवाहित के विवाह का योग बनाता है। अस्थायी नौकरी वाला स्थायी होता है।
द्वादश : इस भाव में शनि धनहानि देता है। बीमारी हो सकती है। पारिवारिक झगड़े करवाता है।

कुंडली के नवम भाव से जानें पितृदोष:-

जन्म कुंडली का नवम भाव बेहद महत्वपूर्ण भाव होता है। यह भाव पिता के सुख, आयु व समृद्धि का कारक है, वहीं यह जातक के स्वयं के भाग्य, तरक्की, धर्म संबंधी रुझान को बताता है।

सूर्य पिता का कारक होता है, वहीं सूर्य जातक को मिलने वाली तरक्की, उसके प्रभाव क्षेत्र का कारक होता है। ऐसे में सूर्य के साथ यदि राहु जैसा पाप ग्रह आ जाए तो यह ग्रहण योग बन जाता है अर्थात सूर्य की दीप्ति पर राहु की छाया पड़ जाती है। ऐसे में जातक के पिता को मृत्युतुल्य कष्ट होता है, जातक के भी भाग्योदय में बाधा आती है, उसे कार्यक्षेत्र में विविध संकटों का सामना करना पड़ता है। जब सूर्य और राहु का योग नवम भाव में होता है, तो इसे पितृदोष कहा जाता है।



सूर्य और राहु की युति जिस भाव में भी हो, उस भाव के फलों को नष्ट ही करती है और जातक की उन्नाति में सतत बाधा डालती है। विशेषकर यदि चौथे, पाँचवें, दसवें, पहले भाव में हो तो जातक का सारा जीवन संघर्षमय रहता है। सूर्य प्रगति, प्रसिद्धि का कारक है और राहु-केतु की छाया प्रगति को रोक देती है। अतः यह युति किसी भी भाव में हो, मुश्किलें ही पैदा करती है।


निवारण : पितृदोष के बारे में मनीषियों का मत है कि पूर्व जन्म के पापों के कारण या पितरों के शाप के कारण यह दोष कुंडली में प्रकट होता है अतः इसका निवारण पितृ पक्ष में शास्त्रोक्त विधि से किया जाता है।


अन्य उपाय :


* प्रत्येक अमावस्या को एक ब्राह्मण को भोजन कराने व दक्षिणा-वस्त्र भेंट करने से पितृदोष कम होता है।


* प्रत्येक अमावस्या को कंडे की धूनी लगाकर उसमें खीर का भोग लगाकर दक्षिण दिशा में पितरों का आह्वान करने व उनसे अपने कर्मों के लिए क्षमायाचना करने से भी लाभ मिलता है।


* पिता का आदर करने, उनके चरण स्पर्श करने, पितातुल्य सभी मनुष्यों को आदर देने से सूर्य मजबूत होता है।


* सूर्योदय के समय किसी आसन पर खड़े होकर सूर्य को निहारने, उससे शक्ति देने की प्रार्थना करने और गायत्री मंत्र का जाप करने से भी सूर्य मजबूत होता है।


* सूर्य को मजबूत करने के लिए माणिक भी पहना जाता है, मगर यह कुंडली में सूर्य की स्थिति पर निर्भर करता है।


यह तय है कि पितृदोष होने से जातक को श्रम अधिक करना पड़ता है, फल कम व देर से मिलता है अतः इस हेतु मानसिक तैयारी करना व परिश्रम की आदत डालना श्रेयस्कर रहता है।

राहु की महादशा हर वक्त नुकसानदायक नहीं


rahuराहु का नाम आते ही हम घबरा जाते हैं। राहु की महादशा लगने पर मानते हैं कि जैसे सब कुछ समाप्त हो गया। पंरतु हकीकत कुछ और है। राहु को सभी कू्र ग्रह समझते हैं। लेकिन ऐसा नहीं है। राहु और उसकी महादशा हर समय नुकसानदायक नहीं होती। राहु रंक को भी राजा बनाने की क्षमता रखता है। राहु की महादशा में विदेश जाने से बड़ा लाभ होता है। विदेश का मतलब है वर्तमान निवास से दूर जाकर कार्य करने से सफलता मिलती है। राहु चतुर्थ, दशम, एकादश या नवम स्थान में अपने मित्र शनि-शुक्र की राशि मकर, कुंभ, वृषभ या तुला राशि में स्थित हो तो अप्रत्याशित सफलता दिलाता है।
वही राहु यदि मिथुन राशि में हो तो कई ज्योतिष विद्वानों द्वारा उच्च का माना जाता है। राहु एक छाया ग्रह है। यह किसी भी राशि का स्वामी नही है। परंतु यह जिसके अनुकुल हो जाता है उसे आसमान की उचांईयो पर ले जाता है।
अटल बिहारी बाजपेयी, मनमोहन सिंह राहु की महादशा मे ही प्रधानमंत्री बने हैं। भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी भी राहु की महादशा में कप्तान बने तथा सफलता प्राप्त की ऐसे अनेक उदाहरण हैं। जिन्हें राहु ने राजा बनाया।  राजनितिज्ञों के लिए तो राहु का अनूकुल होना अत्यधिक फायदेमंद है।राहु को शांत कर के लिए शनिवार के दिन अपना इस्तेमाल किया हुआ कंबल किसी गरीब को दान करें। इसके अलावा काले कुत्ते को रोटी खिलाएं। अमावस्या को पीपल पर रात में 12 बजे दीपक जलाएं। शनिवार को उड़द के बड़े बनाकर खाएं। शिवजी पर जल, धतुरा के बीज, चढ़ाएं और सोमवार का व्रत करें।

शिव पूजा के पीड़ानाशक ज्योतिष उपाय

भगवान शिव के प्रिय मास सावन में किया गया शिव पूजन, व्रत और उपवास बहुत फलदायी होता है। शास्त्रों में शिव का मतलब कल्याण करने वाला बताया गया है। इसलिए सावन माह का ज्योतिष विज्ञान में भी बहुत महत्व बताया गया है। क्योंकि ज्योतिष शास्त्र में सावन माह में शिव पूजा के द्वारा अनेक ग्रह दोष और उनकी पीड़ाओं से मुक्ति के उपाय बताए गए हैं। जिसमें हर राशि के व्यक्ति के लिए भगवान शिव की उपासना और पूजा के विशेष उपाय बताए गए हैं। जिनका शिव आराधना के समय पालन करने पर हर कोई मनचाहा फल पा सकता है। वैसे सभी राशि के लोग शिव पूजा किसी भी विधि से कर सकते हैं। लेकिन यहां बताए जा रहे शिव पूजा के विशेष उपाय ज्यादा प्रभावकारी माने जाते हैं।

सावन में हर राशि का व्यक्ति शिव पूजन से पहले काले तिल जल में मिलाकर स्नान करे। शिव पूजा में कनेर, मौलसिरी और बेलपत्र जरुर चढ़ावें। इसके अलावा जानते हैं कि किस राशि के व्यक्ति को किस पूजा सामग्री से शिव पूजा अधिक शुभ फल देती है।

मेष - इस राशि के व्यक्ति जल में गुड़ मिलाकर शिव का अभिषेक करें। शक्कर या गुड़ की मीठी रोटी बनाकर शिव को भोग लगाएं। लाल चंदन व कनेर के फूल चढ़ावें।
वृष- इस राशि के लोगों के लिए दही से शिव का अभिषेक शुभ फल देता है। इसके अलावा चावल, सफेद चंदन, सफेद फूल और अक्षत यानि चावल चढ़ावें।
मिथुन - इस राशि का व्यक्ति गन्ने के रस से शिव अभिषेक करे। अन्य पूजा सामग्री में मूंग, दूर्वा और कुशा भी अर्पित करें।
कर्क - इस राशि के शिवभक्त घी से भगवान शिव का अभिषेक करें। साथ ही कच्चा दूध, सफेद आंकड़े का फूल और शंखपुष्पी भी चढ़ावें।
सिंह - सिंह राशि के व्यक्ति गुड़ के जल से शिव अभिषेक करें। वह गुड़ और चावल से बनी खीर का भोग शिव को लगाएं। गेहूं और मंदार के फूल भी चढ़ाएं।
कन्या - इस राशि के व्यक्ति गन्ने के रस से शिवलिंग का अभिषेक करें। शिव को भांग, दुर्वा व पान चढ़ाएं।
तुला - इस राशि के जातक इत्र या सुगंधित तेल से शिव का अभिषेक करें और दही, शहद और श्रीखंड का प्रसाद चढ़ाएं। सफेद फूल भी पूजा में शिव को अर्पित करें।
वृश्चिक - पंचामृत से शिव का अभिषेक वृश्चिक राशि के जातकों के लिए शीघ्र फल देने वाला माना जाता है। साथ ही लाल फूल भी शिव को जरुर चढ़ाएं।
धनु - इस राशि के जातक दूध में हल्दी मिलाकर शिव का अभिषेक करे। भगवान को चने के आटे और मिश्री से मिठाई तैयार कर भोग लगाएं। पीले या गेंदे के फूल पूजा में अर्पित करें।
मकर - नारियल के पानी से शिव का अभिषेक मकर राशि के जातकों को विशेष फल देता है। साथ ही उड़द की दाल से तैयार मिष्ठान्न का भगवान को भोग लगाएं। नीले कमल का फूल भी भगवान का चढ़ाएं।
कुंभ - इस राशि के व्यक्ति को तिल के तेल से अभिषेक करना चाहिए। उड़द से बनी मिठाई का भोग लगाएं और शमी के फूल से पूजा में अर्पित करें। यह शनि पीड़ा को भी कम करता है।
मीन - इस राशि के जातक दूध में केशर मिलाकर शिव पर चढ़ाएं। भात और दही मिलाकर भोग लगाएं। पीली सरसों और नागकेसर से शिव का चढ़ाएं।

Wednesday, August 4, 2010

2 मिनिट में जानें सफल होंगे या नहीं

क्या आपकी कोई समस्या, परेशानी, दिक्कत आपको सता रही है? या आप कोई कार्य करना चाहते हैं और उसमें सफलता को लेकर संशय है, या कोई एग्जाम देना है, और आप सोच रहे हैं उसमें सफलता मिलेगी या नहीं, ऐसे हर सवाल के लिए यहां एक यंत्र दिया जा रहा है, जिसकी मदद से आपको अपने कार्य की सफलता-असफलता की ओर इशारा मिलेगा-
प्रश्न करने की विधि- अपनी समस्या या प्रश्न सोचकर अपने आराध्य देव का नाम लेकर आंख बंद करें और अपने कम्प्यूटर के माउस कर्शर के पॉइन्ट को यंत्र के ऊपर घुमाएं और कुछ देर बार माउस रोककर देखें कि कर्शर किस अंक पर है, उसी अंक का उत्तर आपके प्रश्न का उत्तर होगा।

1. प्रश्न उत्तम है, कार्य पूर्ण होने की पूरी संभावना है।
2. आराध्य देव की पूजा करके कार्य शुरू करें, सफलता निश्चित मिलेगी।
3. इस कार्य का परिणाम गड़बड़ हो सकता है।
4. आपने कार्य के लिए जो रास्ता चुना है, उसे बदलकर नए तरीके से कार्य करें, सफलता अवश्य मिलेगी।
5. कार्य में सफलता संभावित है। कार्य भगवान पर छोड़ दें।
6. और अधिक प्रयत्न करने की जरूरत है, सफलता निश्चित ही मिलेगी।
7. कार्य में कई परेशानियां आएंगी परंतु कार्य पूर्ण हो जाएगा।
8. कार्य कठिनाइयों से भरा है, सफलता की उम्मीद कम है।
9. इस कार्य में शत-प्रतिशत सफलता सफलता मिलेगी।

वास्तु से बढाएं पिता-पुत्र में प्रेम

वास्तु अध्ययन व अनुभव यह बताता है कि जिस भवन में वास्तु स्थिति गड़बड होती है, वहाँ व्यक्ति के पारिवारिक व व्यक्तिगत रिश्तों में अक्सर मतभेद, तनाव उत्पन्न होते रहते हैं। वास्तु में पूर्व ईशानजनित दोषों के कारण पिता-पुत्र के संबंधों में धीरे-धीरे गहरे मतभेद दूरियाँ उत्पन्न हो जाती हैं और साथ ही कई परिवारों को पुत्र हानि का भी सामना करना पड़ता है सूर्य को पुत्र का कारक ग्रह माना जाता है, जब भवन में ईशान व पूर्व वास्तु दोषयुक्त हो तो यह घाव में नमक का कार्य करता है। जिससे पिता-पुत्र जैसे संबंधों में तालमेल का भाव व पुत्र-पिता के प्रति दुर्भावना रखता है। वास्तु के माध्यम से पिता पुत्र के संबंधों को अति मधुर बनाया जा सकता है।

महत्वपूर्ण व उपयोगी तथ्य जो पिता-पुत्र के संबंधों को प्रभावित करते हैं :

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ईशान (उत्तर-पूर्व) में भूखण्ड कटा हुआ नहीं होना चाहिए।
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भवन का भाग ईशान (उत्तर-पूर्व) में उठा होना अशुभ हैं। अगर यह उठा हुआ है तो पुत्र संबंधों में मधुरता व नजदीकी का आभाव रहेगा।
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उत्तर-पूर्व (ईशान) में रसोई घर या शौचालय का होना भी पुत्र संबंधों को प्रभावित करता है। दोनों के स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ बनी रहती है।
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दबे हुए ईशान में निर्माण के दौरान अधिक ऊँचाई देना या भारी रखना भी पुत्र और पिता के संबंधों को कलह और परेशानी में डालता रहता है।
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ईशान (उत्तर-पूर्व) में स्टोर रूम, टीले या पर्वतनुमा आकृति के निर्माण से भी पिता-पुत्र के संबंधों में कटुता रहती है तथा दोनों एक-दूसरे पर दोषारोपण करते रहते हैं।
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इलेक्ट्रॉनिक आइटम या ज्वलनशील पदार्थ तथा गर्मी उत्पन्न करने वाले अन्य उपकरणों को ईशान (उत्तर-पूर्व) में रखने से पुत्र, पिता की बातों की अवज्ञा अर्थात्‌ अवहे‌लना करता रहता है, और समाज में बदनामी की स्थिति पर ला देता है।
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इस दिशा में कूड़ेदान बनाने या कूड़ा रखने से भी पुत्र, पिता के प्रति दूषित भावना रखता हैं। यहाँ तक मारपीट की नौबत आ जाती है।
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ईशान कोण खंडित होने से पिता-पुत्र आपसी मामलों को लेकर सदैव लड़ते-झगड़ते रहते हैं।
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यदि कोई भूखंड उत्तर व दक्षिण में सँकरा तथा पूर्व व पश्चिम में लंबा है तो ऐसे भवन को सूर्यभेदी कहते हैं यहाँ भी पिता-पुत्र के संबंधों में अनबन की स्थिति सदैव रहती है। सेवा तो दूर वह पिता से बात करना तथा उसकी परछाई में भी नहीं आना चाहता है।
इस प्रकार ईशान कोण दोष अर्थात्‌ वास्तुजनित दोषों को सुधार कर पिता-पुत्र के संबंधों में अत्यंत मधुरता लाई जा सकती हैं। सूर्य संपूर्ण विश्व को ऊर्जा शक्ति प्रदान करता है तथा इसी के सहारे पौधों में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया संचालित होती है तथा पराग कण खिलते हैं जिसके प्रभाव से वनस्पति ही नहीं बल्कि समूचा प्राणी जगत्‌ प्रभावित होता है। पूर्व व ईशानजनित दोषों से प्राकृतिक तौर पर प्राप्त होने वाली सकारात्मक ऊर्जा नहीं मिल पाती और पिता-पुत्र जैसे संबंधों में गहरे तनाव उत्पन्न हो जाते हैं। अतएव वास्तुजनित दोषों को समझते हुए ईशान की रक्षा यत्नपूर्वक करनी चाहिए।

सूर्यास्त के बाद अशुभ फल देते हैं नहोराता के ग्रह


लाल किताब ज्योतिष में अंधे ग्रहों की कुंडली के अलावा एक और सिद्धांत है नहोराता के ग्रह। इन्हें रात्रि में अंधे ग्रहों या रतांध ग्रहों का टेवा भी कहा जाता है। इस परिभाषा में केवल दो ग्रहों का ही जिक्र है यानी चौथे घर में सूर्य हो और सातवें घर में शनि तो ऐसा टेवा रतांध ग्रहों का टेवा कहलाएगा। इस प्रकार के योग से व्यक्ति के कार्यक्षेत्र में अस्थिरता, मानसिक शांति और गृहस्थ सुख की कमी जैसे अशुभ प्रभाव आते हैं। सूर्य-शनि की परस्पर ऐसी स्थिति किसी अन्य भाव में चतुर्थ-दशम स्थिति से बिल्कुल भिन्न है, क्योंकि चौथे घर में सूर्य की स्थिति होने से व्यक्ति का जन्म समय मध्यरात्रि के आसपास का होता है, जिस समय सूर्य निर्बल होता है। वहीं सप्तम भाव का शनि कालपुरुष कुंडली में अपनी उच्चराशि में स्थिर होने से और रात्रि समय जन्म के कारण रात्रि बली होने से सूर्य की अपेक्षा काफी बलवान होता है।
सप्तम में बैठे शनि की दसवीं दृष्टि चौथे घर में बैठे उसके शत्रु सूर्य पर होने से चौथे घर और सूर्य का फल अनेक प्रकार से अशुभ हो जाता है। एक तो चौथे घर का फल यानी हमारी मानसिक शांति और गृहस्थ सुख, दोनों पर शनि का अशुभ प्रभाव और दूसरे शनि की दृष्टि से दूषित सूर्य का चौथे घर पर अपना अशुभ प्रभाव रहता है।
सूर्य की दृष्टि दसवें घर पर होने से उसका प्रभाव कर्मक्षेत्र, नौकरी और व्यवसाय पर भी ठीक नहीं रहता। नहोराता के ग्रहों का अशुभ असर सूर्यास्त के बाद प्रबल होता है। इसका प्रभाव व्यक्ति की दृष्टि और कार्यक्षेत्र में अधिक रहता है। ऐसे व्यक्तियों को अपने कैरियर में बहुत दिक्कतें आती हैं और उतार-चढ़ाव बना रहता है। खासतौर पर अगर वे ऐसे कामों में हों, जहां नाइटशिफ्ट में काम करना पड़े। जिन व्यक्तियों की कुंडली में यह योग हो, उन्हें कोई भी नया काम, नया प्रोजेक्ट सूर्यास्त के बाद शुरू नहीं करना चाहिए। किसी नए कार्य की कार्ययोजना भी सूर्यास्त के बाद न बनाएं, अन्यथा ऐसे प्रोजेक्ट्स में बहुत रुकावटें आती हैं और सफलता संदिग्ध ही रहती हैं।
सूर्य-शनि की ऐसी स्थिति व्यक्ति के आत्मबल (सूर्य) और मनोबल (चंद्रमा-चतुर्थ भाव) पर अशुभ असर देती है, जिससे व्यक्ति की निर्णय क्षमता और संकल्पशक्ति पर प्रभाव पड़ता है।

ज्योतिषीय योग दिलाते हैं बैंक में नौकरी



जन्म-कुण्डली का विश्लेषण कर बैंकिंग क्षेत्र में नौकरी की संभावना का पता लगाया जा सकता है। बैंक / लिपिक सेवा वाणिज्य के अन्तर्गत आते हैं। वाणिज्य और वित्त का कारक बुध है। गुरू ज्ञान और तरक़्क़ी का कारक है, शुक्र धन के प्रबंधन / नक़दी / अर्थ का कारक है और शनि ऋण / बॉण्ड / जनता के लेन-देन / ख़रीद-फ़रोख़्त का कारक है। इन ग्रहों का कुछ ख़ास भावों में होना उस व्यक्ति के वित्त-क्षेत्र में काम करने को इंगित करता है।
जिन जातकों के लग्न में वृषभ, सिंह, कन्या, वृश्चिक और धनु राशि हो, उनके इस पेशे में क़ामयाब होने की संभावना ज़्यादा रहती है। कोई बैंकिंग क्षेत्र में प्रवेश कर सकेगा और अधिकारी या लिपिक के तौर पर सफल हो सकेगा या नहीं, ये जानने के लिए कुछ ज्योतिषीय योगों पर विचार करते हैं।
चौथे, पाँचवे या दसवें भाव में बुध और गुरू की स्थिति बैंकिंग / वित्त / वाणिज्य के क्षेत्र से जुड़े पेशे को दर्शाती है। चौथे भाव को शिक्षा के लिए, पाँचवें को लोगों से संपर्क और लेन-देन के लिए, नौवें भाव को उच्च शिक्षा के लिए, छठे भाव को नौकरी के लिए और दसवें भाव को सरकारी क्षेत्र या सरकारी कंपनी में करियर के लिए देखा जाता है। अगर ग्यारहवें भाव या उसके स्वामी पर गुरू और बुध व त्रिकोण में स्थित शुभ ग्रहों की दृष्टि हो, तो जातक बैंकिंग क्षेत्र से धन अर्जित करता है।
अगर चौथे या नौवें भाव का स्वामी बुध या गुरू हो तथा दसवें भाव से दृष्टि-संबंध हो, तो यह बैंक में नौकरी की सम्भावना को मज़बूत करता है। साथ ही इसमें अगर सूर्य की सहभागिता भी हो, तो जातक बैंक में अधिकारी बन सकता है। सूर्य सरकार या प्रशासन को भी दर्शाता है। यदि सूर्य ऊपर बताए गए संयोजन के साथ दसवें या ग्यारहवें भाव में सिंह राशि में बैठा हो, तो जातक शीघ्र ही तरक़्क़ी करता है और सरकारी बैंक व रिज़र्व बैंक आदि में उच्च-अधिकारी का पद भी हासिल कर सकता है।
अगर बुध या गुरू चौथे, नौवें या दसवें भाव के स्वामी हों और लग्न को देख रहे हों, तो जातक वाणिज्य से संबंधित शिक्षा / पेशे से जुड़ा होता है। यदि शुक्र चौथे, नौवें या दसवें भाव का स्वामी हो और दसवें, ग्यारहवें भाव में स्थित हो या उसे देख रहा हो तथा उस पर बुध या बृहस्पति की दृष्टि हो, तो ज़्यादातर देखा गया है कि ऐसा जातक बैंक में नक़द लेन-देन का काम संभालता है। यहाँ भी सूर्य की स्थिति कार्यक्षेत्र में उन्नति को तय करेगी। अगर चौथे, पाँचवें घर का स्वामी शनि हो और ख़ुद दसवें, ग्यारहवें भाव में बैठा हो या देख रहा हो तथा उसके ऊपर बुध या बृहस्पति की दृष्टि हो, तो प्रायः जातक जनता की पूँजी के व्यवहार या लेन-देन से संबंधित काम करता है।
यदि लग्न धनु हो और इसपर किसी भी रूप में सूर्य, बुध या शुक्र की दृष्टि हो, तो ऐसे में उस व्यक्ति के बैंकिंग क्षेत्र में काम करने की प्रबल सम्भावना रहती है। इसके अलावा अगर लग्न धनु हो और शनि जन्म-कुण्डली में या तो दूसरे या नौवें भाव में स्थित हो व उसपर बृहस्पति या बुध की दृष्टि हो, तो जातक बैंक और उससे जुड़ी सेवाओं के ज़रिए धनार्जन करेगा। इसी तरह यदि लग्न में धनु राशि हो और गुरू दूसरे, ग्यारहवें भाव के स्वामी को देख रहा हो या स्वयं इन भावों में कहीं बैठा हो तथा शुक्र और बुध साथ में बैठे हों व शक्तिशाली हों, तो जातक को बैंकिंग क्षेत्र में निश्चित तौर पर सफलता मिलती है।
यदि लग्न कन्या है, बुध मिथुन राशि में है और गुरू के साथ बैठा है तथा शुक्र शक्तिशाली है, तो जातक को इस क्षेत्र में क़ामयाबी हासिल होती है। इसी तरह कन्या लग्न की कुण्डली में अगर बुध और बृहस्पति की युति हो तथा उनपर शुक्र या चन्द्र की दृष्टि हो तो वह व्यक्ति इस क्षेत्र में सफलता अर्जित करता है। अगर बुध और चन्द्र दोनों ही शक्तिशाली हैं और तो जातक इस क्षेत्र में आकर काफ़ी प्रगति करता है।
यदि लग्न वृषभ है और लग्न में बुध शनि के साथ बैठा है या लग्न को देख रहा है या फिर शनि द्वारा देखा जा रहा है और गुरू शक्तिशाली है, तो जातक बैंकिंग क्षेत्र में क़ामयाबी पाकर अधिकारी बनता है। अगर वृषभ, कन्या या धनु लग्न है और नौवें, दसवें या ग्यारहवें भावों में बुध, शुक्र और शनि के बीच संबंध है, तो जातक बैंक में काम करेगा।
इसी तरह अगर सूर्य, बुध और गुरू शक्तिशाली हों व दसवें भाव से संबंधित हों तो जातक अर्थशास्त्री बन सकता है।
अगर ग्रहों की शक्ति क्षीण है या वे तटस्थ राशि में बैठे हैं, तो यह औसत शिक्षा को दिखलाता है और बैंक से जुड़ी क्लर्क वग़ैरह की नौकरी को इंगित करता है। यदि वे शत्रु राशियों में बैठे हैं या उनपर अशुभ दृष्टियाँ हैं, तो उन्हें नौकरी के दौरान बेहद समस्याओं का सामना करना पड़ेगा।
बुधादित्य योग वाणिज्य के क्षेत्र में दिलचस्पी को दर्शाता है। यह जातक को अर्थाशास्त्री, बैंक अधिकारी, सांख्यिकीविद, एमबीए या सीए बनाता है। बुध सूर्य से जितना क़रीब हो और पीछे हो, वह उतना ही बेहतर परिणाम देता है।

Sunday, August 1, 2010

अपनी ज्योतिष समस्याओं का समाधान खुद करें

हर मनुष्य को कुछ न कुछ समस्या घेरे रहती है। इस बार से हम हमारे पाठकों के लिए प्रत्येक समस्याओं का समाधान ज्योतिष के माध्यम से बताएँगे। आपको न गंडे की जरूरत है और न ही किसी के पास जाने की। आप स्वयं अपनी समस्याओं का समाधान खुद कर सकते हैं।

आज हम इस कॉलम से आर्थिक मामलों के बारे में जानेंगे। आज के इस युग में आर्थिक समस्या अधिक है। हर इनसान इस समस्या से जूझ रहा है। हर न्यूज पेपर में निरंतर एक खबर धन से संबंधित रहती है और कोई न कोई इस समस्या से आत्मघाती कदम उठा लेता है।

आय भाव एकादश भाव को कहते हैं व एकादश भाव में बैठे ग्रह को एकादशेश कहते हैं। जन्मकुंडली में एकादश भाव ग्यारहवें भाव को कहते हैं। धन भाव द्वितीय भाव को कहते हैं। आय हो लेकिन बचत न हो तब भी थोड़ी परेशानी रहती है। जितनी परेशानी आय न होने पर रहती है उतनी बचत न होने पर नहीं रहती।

जब आय भाव एकादश का स्वामी अष्टम भाव में हो तो आय के मामलों में बाधा का कारण बनता है। ऐसी स्थिती में एकादश भाव को बलवान किया जाए तो आय के क्षेत्र में बाधा दूर होती है। एकादश भाव के स्वामी की वस्तुओं को सवा पाव उस ग्रह से संबंधित रंग के कपडे़ में बाँधकर घर की छत पर रखना चाहिए, ऐसा करने से आय में सुधार आएगा।

एकादशेश व धनेश एक ही हो तब उससे संबंधित रत्न धारण करना चाहिए। या उससे संबंधित वस्तुओं को उसी रंग के कपडे़ में बाँधकर घर में रखना चाहिए। इसी प्रकार षष्ट भाव में हो तो उपरोक्त उपाय करना चाहिए।




षष्ट भाव का स्वामी अष्टम में हो तो कर्ज बढ़ता है व कर्ज जल्दी चूकता नहीं। ऐसी स्थिति किसी की पत्रिका में हो तो उन्हें कर्ज नहीं लेना चाहिए। लग्नेश षष्ट भाव में हो तो ऐसा जातक कर्ज लेता है। और यदि षष्टेश अष्टम में हो तो फिर कर्ज नहीं चूकता। और किसी कारण से कर्ज लेना पड़ जाए तो लग्न के स्वामी के रत्न को धारण करना चाहिए।

मेष लग्न में एकादशेश शनि, वृषभ लग्न में एकादशेश गुरु, मिथुन लग्न में मंगल, कर्क लग्न में शुक्र, सिंह लग्न में बुध, कन्या लग्न में चन्द्र, तुला लग्न में सूर्य, वृश्चिक लग्न में बुध, धनु लग्न में शुक्र, मकर लग्न में मंगल, कुंभ लग्न में गुरु, मीन लग्न में शनि होगा।