आखिर आ ही गया कोमनवेल्थ खेलो का समय बस थोड़े दिन और उसके बाद आपकी दिल्ली में होंगे वे मेहमान जिनके लिए आपकी सरकार आपसे दिल खोल कर टैक्स वसूल कर रही है! टैक्स में वसूला हुआ धन कहा खर्च हो रहा है और आपकी जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए सरकार क्या कर रही है ये इस मानसून की पहली बारिश में ही पता चल गया ! जिस तरह एक दिन की बारिश ने दिल्ली के लोगो की रफ़्तार को थामा उससे सरकार की पोल अभी ही खुल गयी ! खेलो के नाम पर जनता को महंगाई के चक्रव्यूह में फंसा कर अब राजनेता मुस्कुरा रहे है ! सीधी सी बात है आज तक जिस चीज के रेट सरकार ने एक बार बढ़ाये है वो कभी कम नहीं हुए ! और इस बार तो सरकार को बहाना भी मिल गया ! खेलो के नाम पर जनता की जम कर जेब काटी गयी ! आज उन सभी प्रोजेक्ट के बारे में सरकार का क्या कहना है जो अभी तक पूरे नहीं हुए और खेलो के ख़त्म होने के बाद भी उनके जल्द पूरे होने के आसार नहीं है ! किस देश में ऐसी मिसाल मिलेगी की जनता का गला दबा कर बाहर वालो की आवभगत की जाए !
चलिए एक बार मान भी लेते है की सरकार दिल्ली की परिस्थिति को सुधारना चाहती है इसलिए टैक्स लगा दिए गए ! पर टैक्स में वसूला पैसा कहाँ खर्च हुआ वो कही दिखाई नहीं दे रहा ! टमाटर ६० रूपये किलो है कोई बात नहीं बाद में देख लेंगे अभी पहले खेल तो करा ले ! सडको पर गड्ढो के कारण जाम की सी हालत है कोई बात नहीं खेल करने जरुरी है ! देश का गरीब भूखा मर रहा है और गोदामों में टनों के हिसाब से अनाज सड गया इसकी फ़िक्र किसी को नहीं ! होता तो बस ये है की केंद्र राज्यों पर जिम्मेदारी डालता है और राज्य केंद्र को जिम्मेदार ठहरा रहे है ! लोग तो मरते ही रहते है हमें तो देश की इज्ज़त खेलो से बढानी है ! खेलो के दौरान लगभग २५ दिन तक चांदनी चौक , सदर बाज़ार और खारी बावली जैसे बाजारों को बंद रखने का प्रस्ताव है ! कही विदेशी ये न देख ले की यहाँ का मजदूर कैसे दिन भर पसीना बहा कर अपनी रोटी कमाता है ! कही हमारे मेहमानों को ये न पता चल जाए की भारत की राजधानी में लोग जाम में कैसे फंसते है !
आज के हालत देख कर वही बात याद आती है रोम जल रहा था और नीरो बांसुरी बजा रहा था ! आज जनता खून के आंसू रो रही है और सरकार अपने में मस्त है ! लोगो की सुरक्षा के सवाल पर सरकार यूँ मौन होती है जैसे की किसी ने अश्लील सवाल कर दिया हो दिल्ली अब वारदातों की राजधानी बन चुकी है । जहा हर रोज एक के बाद एक वारदातें हो रही है ।आये दिन की खबर है हत्याकांड होना लूट होना ! अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए सरकार चाहे इसे ओनर किलिंग कहे या कुछ और अपराधी तो अपना काम कर रहे है ! अगर बात की जाए महंगाई की तो सरकार तर्क देने को तेयार है ! ईंधन के दाम बढ़ने पर सरकार का कहना है की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कीमत बढ गयी है !चलिए मान लेते है की पेट्रोल और डीज़ल के दाम अंतर्राष्ट्रीय स्तरपर बड़े तो दाम बढ़ाना लाजिमी हो जाता है और सरकार तेल कम्पनियों को भी घाटे से बचाना चाहती है तो क्यों नहीं सरकार ईंधन पर अपना लगाया जाने वाला टैक्स कम कर देती ? यदि ईंधन पर से सरकारी टैक्स हटा दिया जाए तो ५२ रूपये लीटर का पेट्रोल लगभग २६ रुपये लीटर मिले पर नहीं अपना हिस्सा सरकार कम न करके आम आदमी से वसूल कर घाटा पूरा करना चाहती है !महंगाई भले ही अरबपति मुख्यमंत्रियों /करोडपति मंत्रियों /उद्योगपतियों /नौकरशाहों /बड़े व्यापारियों के लिए कोई मायने नहीं रखती हो लेकिन बेरोजगार/छोटे किसान /गरीब और मजदूर के सामने तो संकट खडा कर ही देती है ।अब तक सरकार जो कर रही है वह केवल भ्रामक निवारण है। यानि जब-जब महंगाई बढ़े, उसका कोई तात्कालिक कारण बताकर अपने सिर पर जिम्मेदारी लेने से बचा जाए। फिर रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति पर अपनी रूखी व्याख्या कर रेपो, रिवर्स रेपो दर में घट-बढ़ करे और ऐसा अनुमान बताए कि बस महंगाई कम होती नजर आए। कहीं सब्सिडी तो कहीं समर्थन मूल्य बढ़ाने का आश्वासन देकर यह बतलाने की कोशिश करे कि वह जनता की परम हितैषी है। आंकड़े बताते हैं कि पिछले चार सालों में सरकार ने जितना धन दलहन की खेती के प्रोत्साहन के लिए दिया उससे दोगुना हर वर्ष दालों के आयात पर खर्च होता है। अरहर, मटर, मूंग, चना, उड़द और मसूर सभी प्रमुख दालों का आयात लगातार बढ़ रहा है। दालों के आयात के लिए सरकार 5 हजार करोड़ रूपए वार्षिक खर्च कर रही है, जबकि दलहन खेती को बढ़ावा देने संबंधी योजनाओं पर मात्र 5 सौ करोड़ रूपए।
मेरा मत साफ़ है सरकार की जिम्मेदारी है की अपने नागरिको की सेहत सुरक्षा और जीवनशेली को बेहतर बनाये क्यूकि किसी भी सरकार का गठन इसीलिए होता है ! पर हमारे राजनेता सेवक बनकर चुनाव लड़ते है और जीतने पर जिस जनता ने वोट दिया उसी को चोट देने पर आमादा हो जाते है ! पर उन्हें ये नहीं भूलना चाहिए की इसी जनता ने जब उन्हें गद्दी दी है तो वही जनता इसका फैसला पलट भी सकती है !
चलिए एक बार मान भी लेते है की सरकार दिल्ली की परिस्थिति को सुधारना चाहती है इसलिए टैक्स लगा दिए गए ! पर टैक्स में वसूला पैसा कहाँ खर्च हुआ वो कही दिखाई नहीं दे रहा ! टमाटर ६० रूपये किलो है कोई बात नहीं बाद में देख लेंगे अभी पहले खेल तो करा ले ! सडको पर गड्ढो के कारण जाम की सी हालत है कोई बात नहीं खेल करने जरुरी है ! देश का गरीब भूखा मर रहा है और गोदामों में टनों के हिसाब से अनाज सड गया इसकी फ़िक्र किसी को नहीं ! होता तो बस ये है की केंद्र राज्यों पर जिम्मेदारी डालता है और राज्य केंद्र को जिम्मेदार ठहरा रहे है ! लोग तो मरते ही रहते है हमें तो देश की इज्ज़त खेलो से बढानी है ! खेलो के दौरान लगभग २५ दिन तक चांदनी चौक , सदर बाज़ार और खारी बावली जैसे बाजारों को बंद रखने का प्रस्ताव है ! कही विदेशी ये न देख ले की यहाँ का मजदूर कैसे दिन भर पसीना बहा कर अपनी रोटी कमाता है ! कही हमारे मेहमानों को ये न पता चल जाए की भारत की राजधानी में लोग जाम में कैसे फंसते है !
आज के हालत देख कर वही बात याद आती है रोम जल रहा था और नीरो बांसुरी बजा रहा था ! आज जनता खून के आंसू रो रही है और सरकार अपने में मस्त है ! लोगो की सुरक्षा के सवाल पर सरकार यूँ मौन होती है जैसे की किसी ने अश्लील सवाल कर दिया हो दिल्ली अब वारदातों की राजधानी बन चुकी है । जहा हर रोज एक के बाद एक वारदातें हो रही है ।आये दिन की खबर है हत्याकांड होना लूट होना ! अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए सरकार चाहे इसे ओनर किलिंग कहे या कुछ और अपराधी तो अपना काम कर रहे है ! अगर बात की जाए महंगाई की तो सरकार तर्क देने को तेयार है ! ईंधन के दाम बढ़ने पर सरकार का कहना है की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कीमत बढ गयी है !चलिए मान लेते है की पेट्रोल और डीज़ल के दाम अंतर्राष्ट्रीय स्तरपर बड़े तो दाम बढ़ाना लाजिमी हो जाता है और सरकार तेल कम्पनियों को भी घाटे से बचाना चाहती है तो क्यों नहीं सरकार ईंधन पर अपना लगाया जाने वाला टैक्स कम कर देती ? यदि ईंधन पर से सरकारी टैक्स हटा दिया जाए तो ५२ रूपये लीटर का पेट्रोल लगभग २६ रुपये लीटर मिले पर नहीं अपना हिस्सा सरकार कम न करके आम आदमी से वसूल कर घाटा पूरा करना चाहती है !महंगाई भले ही अरबपति मुख्यमंत्रियों /करोडपति मंत्रियों /उद्योगपतियों /नौकरशाहों /बड़े व्यापारियों के लिए कोई मायने नहीं रखती हो लेकिन बेरोजगार/छोटे किसान /गरीब और मजदूर के सामने तो संकट खडा कर ही देती है ।अब तक सरकार जो कर रही है वह केवल भ्रामक निवारण है। यानि जब-जब महंगाई बढ़े, उसका कोई तात्कालिक कारण बताकर अपने सिर पर जिम्मेदारी लेने से बचा जाए। फिर रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति पर अपनी रूखी व्याख्या कर रेपो, रिवर्स रेपो दर में घट-बढ़ करे और ऐसा अनुमान बताए कि बस महंगाई कम होती नजर आए। कहीं सब्सिडी तो कहीं समर्थन मूल्य बढ़ाने का आश्वासन देकर यह बतलाने की कोशिश करे कि वह जनता की परम हितैषी है। आंकड़े बताते हैं कि पिछले चार सालों में सरकार ने जितना धन दलहन की खेती के प्रोत्साहन के लिए दिया उससे दोगुना हर वर्ष दालों के आयात पर खर्च होता है। अरहर, मटर, मूंग, चना, उड़द और मसूर सभी प्रमुख दालों का आयात लगातार बढ़ रहा है। दालों के आयात के लिए सरकार 5 हजार करोड़ रूपए वार्षिक खर्च कर रही है, जबकि दलहन खेती को बढ़ावा देने संबंधी योजनाओं पर मात्र 5 सौ करोड़ रूपए।
मेरा मत साफ़ है सरकार की जिम्मेदारी है की अपने नागरिको की सेहत सुरक्षा और जीवनशेली को बेहतर बनाये क्यूकि किसी भी सरकार का गठन इसीलिए होता है ! पर हमारे राजनेता सेवक बनकर चुनाव लड़ते है और जीतने पर जिस जनता ने वोट दिया उसी को चोट देने पर आमादा हो जाते है ! पर उन्हें ये नहीं भूलना चाहिए की इसी जनता ने जब उन्हें गद्दी दी है तो वही जनता इसका फैसला पलट भी सकती है !
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