ज्योतिष मनुष्य के जीवन के हर पहलू की जानकारी देता है। उसकी आयु का निर्धारण भी करता है। मगर जीवन-मरण ईश्वर की ही इच्छानुसार होता है अतः कोई भी भविष्यवक्ता इस बारे में घोषणा न करें ऐसा गुरुओं का निर्देश होता है। हाँ, खतरे की पूर्व सूचना दी जा सकती है। जिससे बचाव के उपाय किए जा सके।
इसके अलावा व्यक्ति के जीवन पर केवल उसकी कुंडली का ही नहीं, वरन उसके संबंधियों की कुंडली के योगों का भी असर पड़ता है। जैसे किसी व्यक्ति की कुंडली में कोई वर्ष विशेष मारक हो मगर उसके पुत्र की कुंडली में पिता का योग बलवान हो, तो उपाय करने पर यह मारक योग केवल स्वास्थ्य कष्ट का योग मात्र बन जाता है। अतः इन सब बातों का ध्यान रखते हुए मनीषियों ने आयु निर्धारण के सामान्य नियम बताते हुए अल्पायु योगों का संकेत दिया है। पेश है उन्हीं की चर्चा :
1. आयु निर्धारण में मुख्य ग्रह यानि लग्न के स्वामी का बड़ा महत्व होता है। यदि मुख्य ग्रह 6, 8,12 में है तो वह स्वास्थ्य की परेशानी देगा ही देगा और उससे जीवन व्यथित होगा अतः इसकी मजबूती के उपाय करना जरूरी होता है।
2. यदि सभी पाप ग्रह शनि, राहू, सूर्य, मंगल, केतु और चंद्रमा (अमावस्या वाला) 3, 6,12 में हो तो आयु योग कमजोर करते हैं। लग्न में लग्नेश सूर्य के साथ हो और उस पर पाप दृष्टि हो तो आयु योग कमजोर पड़ता है।
3. यदि आठवें स्थान का स्वामी यानि अष्टमेश 6 या 12 स्थान में हो और पाप ग्रहों के साथ हो या पाप प्रभाव में हो तो आयु कम करते है। लग्नेश निर्बल हो और केंद्र में सभी पाप ग्रह हो, जिन पर शुभ दृष्टि न हो तो आयु कम होती है।
4. धन और व्यय भाव में (2 व 12 में) पाप ग्रह हो और मुख्य ग्रह कमजोर हो तो आयु कम होती है।
5. लग्न में शुक्र और गुरु हो और पापी मंगल 5वें भाव में हो तो आयु कमजोर करता है।
6. लग्न का स्वामी होकर चन्द्रमा अस्त हो, ग्रहण में हो या नीच का हो तो आयु कम करता है।
विशेष : यदि ये सारे योग या इनमें से कुछ भी योग कुंडली में हो तो विशेष ध्यान रखना चाहिए। सभी तरह के व्यसनों से बचना चाहिए। इष्ट का जप ध्यान-दान करते रहना चाहिए। गुरु की शरण लेना चाहिए और मुख्य ग्रह को मजबूत करने के उपाय करते रहना चाहिए।
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