कुंडली के विभिन्न भावों में स्थित सूर्य से उत्पन्न रोग व कष्टों में लाभ इनकी उपासना से प्राप्त किया जा सकता है। समस्त रोगों के निराकरण सूर्य उपासना से संभव हैं, विशेषकर आंखों के रोग का निराकरण। तुलसीदासजी ने श्रीरामचरित मानस में उल्लेख किया है "नयन दिवाकर कच धन माला।" भगवान राम ने भी रावण पर विजय प्राप्त करने के लिए अगस्त्य ऋषि के कहने पर "आदित्य ह्वदयस्त्रोत" का पाठकर विजय प्राप्त की थी। महाभारत में बताया गया है कि धर्मराज युधिष्ठर ने सूर्य के 108 नामों का जप करके ही "अक्षय पात्र" प्राप्त किया था। सूर्य उपासना अत्यन्त सरल है। कोई भी व्यक्ति आसानी से कर सकता है। सूर्य की उपासना का विधान इस प्रकार है-
सूर्य उदय से पूर्व तांबे के पात्र में जल भरकर लाल चंदन के छींटे दें। जल में चुटकी भर चावल पानी में डालें तथा पूर्वामुखी होकर सूर्य को अƒर्य देकर प्रणाम करें। इसके बाद सात परिक्रमा करें।
"आदित्य ह्वदयस्त्रोत" का नित्य पाठ करें।
प्रतिदिन सूर्य के 108 नामों का जप करें। यदि आप चाहें तो सूर्य सहस्त्रनाम का पाठ कर सकते हैं।
" ऊ घृणि: सूर्याय नम:" मंत्र की एक माला जाप करें।
रविवार के दिन तेल, नमक, अदरक का सेवन नहीं करें।
ऋग्वेद में सूर्य उपासना के कई मंत्र हैं। उनमें से कोई एक मंत्र का जप करने से सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं।
यदि आप ऊपर बताए गए उपाय नहीं कर पाएं तो सूर्य से संबंधित वस्तुओं का दान जैसे माणिक्य, लाल वस्त्र या पुष्प, लाल चंदन,गुड,गेहूं, केसर अथवा तांबे की वस्तु का दान दे सकते हैं।
उपरोक्त वस्तुओं का दान देने से भी सूर्य की अनुकूलता प्राप्त होती है। सूर्य की अनुकूलता के लिए यदि आप रविवार का व्रत करना चाहें तो किसी माह के शुक्लपक्ष के पहले रविवार से व्रत शुरू करके एक वर्ष तक अथवा 30 व्रत करें। व्रत सूर्यास्त से पूर्व खोलें। व्रत के दिन नमक का सेवन कदापि ना करें।
उपरोक्त साधना श्रद्धा एवं विश्वास से करने पर ही पूर्ण लाभ की प्राप्ति संभव है।
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