काला रंग बहुत  लोगों को पसंद नहीं होता है। शुभ कार्यों में इसका इस्तेमाल करना अपशकुन  मानते हैं। जबकि, ज्योतिषशास्त्र एवं तंत्र-विज्ञान में इसे काफी महत्व  दिया गया है। इस रंग में आसुरी शक्ति एवं भूत-प्रेत जैसी अज्ञात ताकत से  रक्षा करने की शक्ति होती है। इसलिए नज़र दोष से बचने के लिए काले रंग के  कपड़े का टुकड़ा बाजू पर बंधते हैं। शनि के कुप्रभाव से बचाने में भी काला  रंग कारगर होता है।
 नकारात्मक ऊर्जा कम करता है कुत्ता
काले  रंग के पशु पक्षियों में भी अद्भुत शक्तियां होती हैं। मिथक के अनुसार  कुत्ता एक ऐसा जानवर है जिसमें नकारात्मक ऊर्जा को कम करने की शक्ति होती  है उसमें भी काला रंग का कुत्ता अधिक प्रभावशाली होता है। धर्म ग्रंथों में  काले रंग के कुत्ते को भैरव देव का प्रतीक माना गया है जो नकारात्मक  शक्तियों का नाश करने वाले हैं। पांडवों की परीक्षा के लिए धर्मराज ने भी  काले कुत्ते का रूप धारण किया था। यह भी काले कुत्ते का महत्व को दर्शाता  है। प्रतिदिन काले रंग के कुत्ते को भोजन देने से संतान सुख में आने वाली  बाधा दूर होती है। इससे शनि एवं केतु दोनों ही ग्रहों का कुप्रभाव नष्ट  होता है। 
अमृत पीने वाला पक्षी है कौवा
कौवा  काले रंग का एक पक्षी है जिसे बहुत से लोग निकृष्ट और अशुभ पक्षी मानते  हैं। अपनी कर्कश आवाज की वजह से भी कौवा लोगों को पसंद नहीं आता है लेकिन,  तंत्र-विज्ञान में इसे चमत्कारी पक्षी माना जाता है। मिथक है कि सागर मंथन  से प्राप्त अमृत पीने वाला एक मात्र पक्षी कौवा है। कौवा लम्बे समय तक  जीवित रहता है और सामान्य स्थिति में इसकी मृत्यु नहीं होती है।
 कौवा यमराज का दूत
कौए  के विषय में यह भी मिथक है कि यह यमराज का दूत होता है। आसमान के रास्ते  यमलोक तक उड़कर जाता है और धरती पर रहने वाले लोगों की सारी जानकारियां  यमराज तक पहुंचाता है। शास्त्रों में कहा गया है कि पितृपक्ष में पितर लोग  कौवा बनकर धरती पर आते हैं और अपनी संतान को देखते हैं। उनके लिए जो भी  अन्न एवं जल दान किया जाता है और ब्राह्मणों को खिलाया जाता है उसका जूठन  वह खाते हैं इससे उनको मुक्ति मिलती है।
 कौए की सेवा से संतान सुख
ज्योतिषशास्त्र  के अनुसार जिनकी कुण्डली में पितृदोष होता है उन्हें संतान सुख मिलना कठिन  होता है। ऐसे लोग सुबह रोटी को पानी में भिंगोकर कौए को दें तो संतान सुख  में आने वाली बाधा दूर होती है। पितृपक्ष में कौए को खाना देने के पीछे भी  यह उद्देश्य यही होता है कि उनके पितृगण संतुष्ट हों और उनका आशीर्वाद  उन्हें मिलता रहे।