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Saturday, September 4, 2010

सम्पादकीय ( समीर चतुर्वेदी ) 04/09/2010


नक्सलियों ने एक बार फिर सरकार के सामने चुनौती पेश की है ! एक बार फिर सरकार को दिखाने और जताने का प्रयास किया है की वे सिर्फ एक ही घटना को अंजाम देकर चुप बैठने वालो में से नहीं है ! सरकार के गृह मंत्री भले ही बड़ी बड़ी बातों और बयानों के देने के बाद याद न रखे मगर नक्सली अपने काम में बदस्तूर लगे हुए हैं! पहले नक्सलियों ने बिहार में पुलिस पर हमला किया और फिर उनके चार जवानो को बंधक बना के अपने साथ ले गए और उन्ही बंधको के एवज में अब वो सरकार को घुटनों के बल बैठा कर अपनी मांगे मनवाना चाहते हैं ! पर बिहार सरकार अभी तक ये निश्चित नहीं कर पायी की बातचीत कैसे शुरू हो और बंधको के बारे में  क्या बात हो !

                                                       बात सिर्फ ये नहीं है की ये समस्या अभी एक बार की है मुसीबत ये है की इस समस्या का कोई स्थायी संधान नहीं हो पा रहा ! प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने जो बयान दिया है की नक्सल आतंकवाद देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा है शायद वो बयान सही नहीं है क्यूंकि ये बयान मनमोहन सिंह तीन साल पहले भी दे चुके है और समस्या वहीँ की वहीँ है इस का मतलब देश की सुरक्षा को सबसे बड़ा खतरा हमारे नेताओं और मंत्रियो से ही है जो की आज तक अपने दिवालिये दिमागों से इस समस्या का हल नहीं सोच पाए और आज तक सिर्फ वोटों  की राजनीति में लगे हैं! या फिर देश के गृह मंत्री बिना किसी सहानुभूति के बयान दे डाला की ये बिहार की सरकार का मामला है वही बता सकते है की क्या करना है  यानी अगर बिहार का मामला है तो भारत से बाहर है बिहार सो कोई मदद की या सुझाव की उम्मीद न करें ! केंद्र आतंकवाद से भी लड़ते समय तुष्टीकरण रुख अपनाता है, वह नक्सलपंथियों से भी निपटने के काम में लचर है। कभी वह इसे कानून एवं व्यवस्था की समस्या बताता है और पूरी जिम्मेदारी राज्यों पर टरका देता है। कभी वह हास्यास्पद तरीके से इसे विकास की समस्या बताता है! अमेरिका के एक प्रमुख रणनीतिक थिंकटैंक ने चेतावनी दी है कि भारत में नक्सली आंदोलन अभी भले ही नियंत्रित लगता है, लेकिन नक्सली नेता और उसके बम निर्माता शहरी आतंकवाद के लिए रणनीति तैयार कर सकते हैं।
                      आखिर ये समस्या इतना विकट रूप कैसे लेती जा रही है इसमें शुरू से ही  कुछ कमियाँ रही जो आज नक्सलियों को पकड़ने में सामने आ रही हैं !  गोरिल्ला वार के जरिये चुनौती बन रहे नक्सलियों से मुकाबले के लिए सन् 2005 तक देश के किसी भी राज्य में ऐसा कोई प्रशिक्षण केन्द्र नहीं था, जहां पुलिस अधिकारी-कर्मियों को नक्सलियों से लड़ना सिखाया जाता. नतीजा पुलिस वालों को मारकर नक्सली चुनौती पेश करते रहे. और जहां तक नक्सल प्रभावित क्षेत्रो की बात है नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के निवासी दोहरी-तिहरी मार खा रहे हैं। नक्सली उन्हें पुलिस का मुखबिर मानकर पूछताछ करते हैं, अंगभंग करते हैं, महिलाओं का भी शोषण करते हैं। पुलिस उन्हें माओवादी मानकर पीटती है, अवैध हिरासत में रखती है। सरकार से निराशा है। दो तरफा अत्याचारों से पीड़ित नवयुवक माओवादियों के साथ हो लेते हैं। नक्सलियों ने विश्वविद्यालयों में सहानुभूति रखने वाले विद्यार्थियों का संगठन खड़ा कर रखा है और नई दिल्ली व अन्य क्षेत्रीय राजधानियों में मानवाधिकार संगठन बना रखे हैं। ये सभी संगठन पूर्वी भारत के ग्रामीण इलाकों में स्थानीय जनजातियों के हितों की वकालत कर रहे हैं।
                                                                                                            आज देश में पूर्व से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण तक हर आदमी अपनी सुरक्षा को लेकर आशंकित नजर आ रहा है चाहे वह घर पर ही हो या सफर क्यों न कर रहा हो .. सभी जगह खतरा बरकरार है। कहीं ये नक्सली हमारे लोकतंत्र को चुनौती तो नहीं दे रहे हैं। इसलिए ऐसी घटनाऐं को वे बार-बार अंजाम दे रहे हैं। अगर पिछली कुछ घटनाओं पर नजर ड़ालें तो स्पष्ट है कि 2008 में नक्सल की कुल 1591 घटनाएं हुईं। 721 व्यक्ति मारे गए। हर वर्ष लगभग 1500 से ज्यादा घटनाएं घटित हो रही हैं और औसतन 700 से ज्यादा लोग मारे जा रहे हैं। फिर भी इसका हल नहीं निकल पा रहा है! आज जबकि नक्सली सरकार को खुलेआम चुनौती देते  घूम  रहे हैं और उनके नेता कहते हैं की जनादेश बन्दूक की गोली से निकलता है इसका क्या मतलब है ! अगर यही रणनीति नक्सलियों की है तो अब इनसे बातचीत का निमंत्रण  कैसा  ! सीधी कार्यवाही क्यों नहीं करती सरकार ! क्यों नहीं केंद्र और राज्य मिलकर ठोस कदम उठा रहे ! सवाल देश की आंतरिक सुरक्षा का है, और ऐसे समय जब पड़ोसी देशों से खतरा बरकरार है। जल्द ही केन्द्र को राज्य सरकार से मिलकर कार्यवाही करके नक्सली समस्या का समाधान निकालना होगा अन्यथा और खतरनाक परिणाम हो सकते हैं।

1 comment:

  1. jisameer ji aapka kahna bilku sahi hai kab tak sarkar haath par haath rakhkar baithi rahegi aur poltics key chakkar main bechari masoom janta pistti rahegi.....

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