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Saturday, September 25, 2010

सम्पादकीय ( समीर चतुर्वेदी ) 24/09/2010

साँसों की रफ़्तार एक बार फिर तेज है अयोध्या फिर दुबारा सुर्ख़ियों में है   इंतज़ार है अब एक ऐतिहासिक फैसले का उच्च न्यायालय वैसे तो फैसले का दिन तय कर चुका था पर रमेश चन्द्र त्रिपाठी नामक एक पुराने नौकरशाह ने उच्चतम न्यायालय में इस फैसले को रोकने की अर्जी दे डाली जिसमे तर्क दिया गया था की यदि ये फैसला आया तो देश में तनाव की स्तिथि पैदा हो सकती है ! रमेश चन्द्र ने अपनी अर्जी में कहा की सुलह सफाई की एक और कोशिश की जानी चाहिए ! हालांकि उच्च न्यायालय ने रमेश चन्द्र की अर्जी खारिज करते हुए उस पर अदालत का समय नष्ट करने के लिए जुरमाना तक लगा डाला था ! लेकिन रमेश चन्द्र ने सुप्रीम कोर्ट में दुबारा अर्जी लगा दी जिस पर कोर्ट ने २४ तारीख को आने वाले फैसले को रोक दिया और अगली तारीख दे डाली !


                                                                                              आखिर ये रमेश चन्द्र है कौन ? रमेश चन्द्र त्रिपाठी पूर्व मुख्यमंत्री श्रीपति मिश्र की बुआ के बेटे हैं। रमेश चन्द्र अयोध्या मामले में डिफेन्डेंट नम्बर 17 हैं। सन् 2000 में उन्होंने हरिशंकर जैन को वकील किया लेकिन आर्थिक तंगी से पैरवी नहीं कर सके। कुछ वर्षो से हृदय रोग से पीड़ित हैं। राजधानी में उन्होंने इलाज भी कराया था। राजनैतिक विचारधारा के  त्रिपाठी खुद भी राजनीति में आना चाहते थे। रमेश चन्द्र त्रिपाठी की याचिका उच्च न्यायालय द्वारा खारिज करते समय अदालत ने उन पर 50 हजार रुपये का जुर्माना आयद किया था और उसी समय यह बात भी प्रकाश में अदालत के सामने लायी गयी थी कि वर्ष 2005 में किसी अन्य मुकदमे में किसी अदालत के सामने स्वयं रमेश चन्द्र त्रिपाठी द्वारा यह कहा गया था कि उनका मानसिक संतुलन ठीक नही है।अब प्रश्न यह है कि ऐसे व्यक्ति द्वारा ऐसे महत्व पूर्ण वाद में अंतिम समय में हस्तक्षेप को क्यों संज्ञान मे लिया जा रहा है? खैर २४ सितम्बर  जिसका इंतजार अयोध्या मुकदमे के तमाम पक्षकार कर रहे थे। फिर चाहे वह बाबरी मस्जिद  एक्शन कमेटी हो, या फिर विहिप या फिर फैसले का इंतजार कर रहा कोई आम भारतीय। यह एेसा अनोखा संयोग था, जिस पर दोनों पक्ष  बहुप्रतीक्षित फैसले का सर्वसम्मित से इंतजार कर थे,  लेकिन अचानक रमेश चन्द्र त्रिपाठी जागे और उन्हें कामेनवेल्थ गेम, पंचायत चुनाव, नक्सली हिंसा और तमाम तरह की चिंता सताने लगी, जिन्हें देश लम्बे समय से देखता आ रहा है, पर हलकिसी का नहीं निकल सका और फैसला इन सबका नहीं बल्कि अयोध्या विवाद पर आने वाला था। आखिर रमेश चन्द्र की नींद ६० साल से क्यों नहीं टूटी ? अगर वो सुलह करवाना चाहते है तो इतने साल से क्यों नहीं प्रयास किया और उनकी सुलह की बात मानने वाला पक्ष है कौन सा ? अब जब फैसला आने को था तभी त्रिपाठी को तनाव की चिंता क्यों सताने लगी ? किसी के भी गले के नीचे ये याचिका नहीं उतर रही ! अयोध्या मसले  पर कोर्ट में दोनों पक्ष ही  इस याचिका से सहमत नहीं दिखे !
               रमेश चन्द्र की नींद तब टूटी जब देश की लगभग पूरी आबादी फैसले के इन्तेजार में थी ! कहीं ऐसा तो नहीं की सिर्फ कन्धा रमेश चन्द्र का हो और गोली कोई और चलाना चाह रहा है ! आखिर वे कौन लोग हैं जो  इस फैसले को टालना चाहते हैं ? कौन है वो जो इस मुद्दे को सिर्फ लटकाना चाह रहे है जिससे इसका फैसला कभी न हो और उन्हे इसे इस्तेमाल करने की समय सीमा मिलती रहे ! एक दिन पहले गृह मंत्री कहते है की फैसला होना ही चाहिए और अगले दिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा रोक लगाये जाने पर कांग्रेस इसका स्वागत करती है ! आखिर कांग्रेस में फैसले को लेकर इतनी बेचैनी क्यों है क्यों कांग्रेस का बयान आया की रमेश चन्द्र न कभी कांग्रेस के सदस्य रहे हैं न कभी उन्होंने कांग्रेस के लिए काम किया है ! सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील जाफरयाब जिलानी ने बयान देकर कांग्रेस की तरफ ऊँगली उठायी है की यदि इसमें कांग्रेस का इसमें कोई हाथ नहीं है तो सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सिर्फ कांग्रेस ने क्यों स्वागत किया है किसी और दल ने क्यों नहीं ?असल में कांग्रेस की मजबूरी दिख रही है क्युकी कोर्ट का फैसला जिस भी पक्ष के खिलाफ जाएगा उसकी नाराजगी सत्तारूढ़ दल से ही  होगी ! अभी कई राज्यों में चुनाव सर पर है राहुल गांधी की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी है सो सबसे ज्यादा बेचैन कांग्रेस ही है !


   खैर जो भी हो आज हिन्दुस्तान ही नहीं पूरे विश्व की नज़र इस फैसले पर टिकी है  एक हफ्ते का समय आगे किये जाने से  फैसले  पर तो कोई असर नहीं होगा हालांकि जिस तरह से अब फैसले में  रुकावट दिखाई दे रही है तो सभी के मन में एक शंका सी उभर रही है की अभी भी फैसला होगा या नहीं ?  लेकिन तब भी अगर फैसला दे दिया जाए तो शायद इस विवाद से मुक्ति शायद मिल ही जाए !

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