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Friday, July 2, 2010

सम्पादकीय 2 / 7 /2010




आखिर वही हुआ भोपाल अचानक जैसे सुर्खियों में आया वैसे ही गायब भी हो गया दिन तक इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने खूब शोर मचाया .शहर के sp और कलेक्टर को एंडरसन को विदा करते दिखाते रहे ! पर अचानक ऐसा क्या हुआ की सभी चेनल एकदम शांत होगये ! अर्जुन सिंह और कांग्रेस पर सवाल उठाने वाले मीडिया को अचानक सांप क्यों सूंघ गया ! किसी ने लौट कर इस बारे में चर्चा करना भी मुनासिब नहीं समझा ! कहाँ गए खबर हर कीमत पर दिखाने  वाले ? कहाँ गए आपको खबरों में सबसे आगे रखने वाले ? कहाँ चली गयी सच की कसौटी ? या परदे के पीछे फिर कोई खेल खेला गया ? कहाँ गयी उन खबरों की सच्चाई जिसमे बताया गया था की किस तरह एक मुख्यमंत्री अपनी ही जनता के मुजरिम को भगाने के लिए अपना सरकारी विमान देता है, किस तरह से प्रधानमंत्री कार्यालय से आदेश आने की बात हो रही है। और उस पर हमारे अफसर जिनका काम था मुजरिमों को पकड़ना, उसे कानून के हवाले करना, वो अफसर, वो कलेक्टर, वो एसपी खुद गाड़ी में छोड़ने जाते हैं मुजरिम को। सरकारी जहाज मुजरिम के लिए तैयार खड़ा है। एक नहीं दो-दो सरकारी गाडियां उसे छोड़ने पहुंचती हैं। वो नौ सीटों वाले जहाज में अकेली सवारी। क्या ये खबरे सिर्फ एक सनसनी पैदा करने के लिए थी या वास्तव में मीडिया इसकी तह तक जाना चाहता था ?
           दरअसल हमर मीडिया अब बाजारू हो गया है , जब तक खबर में  मसाला मिलता रहे वो उससे ऐसे चिपका रहता है जैसे जोंक और जब मीडिया को लगता है की अब कोई नयी सुर्खी चाहिए T R P बढाने के लिए तो फिर कोई नया शोशा सामने ले आते है ! खबर को बड़ा या छोटा बनाना इनके बाएं हाथ का खेल है ! दरअसल तरक्की की अंधी दौड़ में सब ये भूल जाते है की हमारा पहला कर्त्तव्य क्या है ! आज हम खबरिया चेनलो का जो रूप देख रहे है उसमे ये हे समझ नहीं आता की ये खबरिया चेनल है या मनोरंजन ! सभी चैनल एक दुसरे से आगे निकलने की होड़ में एक ही तरीके के कार्यक्रम एक ही समय पर दिखाना चाहते है ! और तो और मनोरंजन चैनल पर आने वाले धारावाहिकों को भी ये ऐसे प्रस्तुत  करते है जैसे कोई बहुत बड़ी खबर दिखा रहे हो . आप किसी न्यूज़ रिपोर्टर को ही  देख लीजिये कही से यदि वो सीधा संवाद दे रहा हो तो ऐसा लगता है शायद अब वो माईक को छोड़ेगा ही नहीं . और जितनी खबर वो दे रहा है शायद उससे ज्यादा अन्दर की जानकारी की किसी को नहीं है . अटकले लगाने में हमारा मीडिया सबसे आगे है . यदि इसका कोई अवार्ड हो तो शायद भारतीय खबरिया चैनल हर बार ये अवार्ड जीतेंगे .
                                                             ये खबरिया चैनल किस मुद्दे को दिखाना चाहते है शायद ये खुद नहीं जानते ! मुझे याद है कुछ समय पहले सूर्य ग्रहण के दिन आपको रखे आगे का दावा करने वाले एक न्यूज़ चैनल ने ज्योतिषियों और तर्क शास्त्रियों के बीच बहस दिखाई . उनका मुद्दा क्या था ये आखिर तक किसी को समझ नहीं आया ! उनका उद्देश्य क्या था ये  भी कम से कम मेरी तो समझ में नहीं आया . यदि वो ज्योतिष को गलत साबित करना चाहते थे तो उन्हें ये याद क्यों नहीं आया की रोज सुबह उनके खुद के चैनल पर भविष्यवाणियो का कार्यक्रम चलता है . यदि नहीं तो वो विज्ञान पर ऊँगली उठा रहे थे . लेकिन  आखिर तक ये नहीं पता चला की कार्यक्रम का मकसद क्या था . आज न्यूज़ का मतलब रह गया है की सलमान ने केटरीना के बारे में क्या कहा ,किस स्टार ने किसको छोड़ा और टीवी की ताज़ा तरीन गोसिप क्या है!!!ग्रहों की टेडी नज़र किस राशि पर है ..क्या अपने कभी किसी न्यूज़ चेनल्स पर इस विषयो पर चर्चा करते हुए देखा है..की सुरक्षा परिषद्  क्या होती है...इसकी स्थायी और अस्थायी सदस्यता का कितना प्रभाव होता है..महाशक्ति मनोनीत होने का मतलब  क्या है?
                                                              आज न्यूज़ चेनल्स की प्राथमिकता यही    है की कौनसे मुद्दे से विवाद पैदा हो सकता है और सनसनी मच सकती है? इन्ही विषयो को ही प्राथमिकता मिलती है....वो अपने रास्ते  पर से भटक गयी है. आज मीडिया की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठने लगे है .   आरोप लगते हैं की किसी न्यूज़ चेनल्स का किसी किसी राजनैतिक पक्षों के साथ आतंरिक मिलीभगत होनें लगी है..मीडिया से आज भी लोग अपेक्षा रखते है की वो लोकतंत्र को मजबूती देने में एक सशक्त भूमिका निभाए

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