ज्योतिषानुसार शुक्र के लिये ज्योतिष शास्त्रों  में जो फ़ल कहे  गये है वे इस प्रकार से है:-  
प्रथम भाव में शुक्र
जातक के जन्म के समय लगन में विराजमान शुक्र को पहले भाव में शुक्र की  उपाधि दी गयी है। पहले भाव में शुक्र के होने से जातक सुन्दर होता है,और  शुक्र जो कि भौतिक सुखों का दाता है,जातक को सुखी रखता है,शुक्र दैत्यों का  राजा है इसलिये जातक को भौतिक वस्तुओं को प्रदान करता है,और जातक को शराब  कबाब आदि से कोई परहेज नही होता है,जातक की रुचि कलात्मक अभिव्यक्तियों में  अधिक होती है,वह सजाने और संवरने वाले कामों में दक्ष होता है,जातक को राज  कार्यों के करने और राजकार्यों के अन्दर किसी न किसी प्रकार से शामिल होने  में आनन्द आता है,वह अपना हुकुम चलाने की कला को जानता है,नाटक सिनेमा और  टीवी मीडिया के द्वारा अपनी ही बात को रखने के उपाय करता है,अपनी उपभोग की  क्षमता के कारण और रोगों पर जल्दी से विजय पाने के कारण अधिक उम्र का होता  है,अपनी तरफ़ विरोधी आकर्षण होने के कारण अधिक कामी होता है,और काम सुख के  लिये उसे कोई विशेष प्रयत्न नही करने पडते हैं।
द्वितीय भाव में शुक्र
दूसरा भाव कालपुरुष का मुख कहा गया है,मुख से जातक कलात्मक बात करता  है,अपनी आंखों से वह कलात्मक अभिव्यक्ति करने के अन्दर माहिर होता है,अपने  चेहरे को सजा कर रखना उसकी नीयत होती है,सुन्दर भोजन और पेय पदार्थों की  तरफ़ उसका रुझान होता है,अपनी वाकपटुता के कारण वह समाज और जान पहिचान वाले  क्षेत्र में प्रिय होता है,संसारिक वस्तुओं और व्यक्तियों के प्रति अपनी  समझने की कला से पूर्ण होने के कारण वह विद्वान भी माना जाता है,अपनी  जानपहिचान का फ़ायदा लेने के कारण वह साहसी भी होता है,लेकिन अकेला फ़ंसने के  समय वह अपने को नि:सहाय भी पाता है,खाने पीने में साफ़सफ़ाई रखने के कारण वह  अधिक उम्र का भी होता है।
तीसरे भाव में शुक्र
तीसरे भाव में शुक्र के होने पर जातक को अपने को प्रदर्शित करने का चाव  बचपन से ही होता है,कालपुरुष की कुन्डली के अनुसार तीसरा भाव दूसरों को  अपनी कला या शरीर के द्वारा कहानी नाटक और सिनेमा टीवी मीडिया के द्वारा  प्रदर्शित करना भी होता है,तीसरे भाव के शुक्र वाले जातक अधिकतर नाटकबाज  होते है,और किसी भी प्रकार के संप्रेषण को आसानी से व्यक्त कर सकते है,वे  फ़टाफ़ट बिना किसी कारण के रोकर दिखा सकते है,बिना किसी कारण के हंस कर दिखा  सकते है,बिना किसी कारण के गुस्सा भी कर सकते है,यह उनकी जन्म जात सिफ़्त का  उदाहरण माना जा सकता है। अधिकतर महिला जातकों में तीसरे भाव का शुक्र बडे  भाई की पत्नी के रूप में देखा जाता है,तीसरे भाव के शुक्र वाला जातक  खूबशूरत जीवन साथी का पति या पत्नी होता है,तीसरे भाव के शुक्र वाले जातक  को जीवन साथी बदलने में देर नही लगती है,चित्रकारी करने के साथ वह अपने को  भावुकता के जाल में गूंथता चला जाता है,और उसी भावुकता के चलते वह अपने को  अन्दर ही अन्दर जीवन साथी के प्रति बुरी भावना पैदा कर लेता है,अक्सर जीवन  की अभिव्यक्तियों को प्रसारित करते करते वह थक सा जाता है,और इस शुक्र के  धारक जातक आलस्य की तरफ़ जाकर अपना कीमती समय बरबाद कर लेते है,तीसरे शुक्र  के कारण जातक के अन्दर चतुराई की मात्रा का प्रभाव अधिक हो जाता है,आलस्य  के कारण जब वह किसी गंभीर समस्या को सुलझाने में असमर्थ होता है,तो वह अपनी  चतुराई से उस समस्या को दूर करने की कोशिश करता है।
चौथे भाव में शुक्र
चौथे भाव का शुक्र कालपुरुष की कुन्डली के अनुसार चन्द्रमा की कर्क राशि  में होता है,जातक के अन्दर मानसिक रूप से कामवासना की अधिकता होती है,उसे  ख्यालों में केवल पुरुष को नारी और नारी को पुरुष का ही क्याल रहता है,जातक  आस्तिक भी होता है,परोपकारी भी होता है,लेकिन परोपकार के अन्दर स्त्री को  पुरुष के प्रति और पुरुष को स्त्री के प्रति आकर्षण का भाव देखा जाता  है,जातक व्यवहार कुशल भी होता है,और व्यवहार के अन्दर भी शुक्र का आकर्षण  मुख्य होता है,जातक का स्वभाव और भावनायें अधिक मात्रा में होती है,वह अपने  को समाज में वाहनो से युक्त सजे हुये घर से युक्त और आभूषणों से युक्त  दिखाना चाहता है,अधिकतर चौथे शुक्र वाले जातकों की रहने की व्यवस्था बहुत  ही सजावटी देखी जाती है,चौथे भाव के शुक्र के व्यक्ति को फ़ल और सजावटी  खानों का काम करने से अच्छा फ़ायदा होता देखा गया है,पानी वाली जमीन में या  रहने वाले स्थानों के अन्दर पानी की सजावटी क्रियायें पानी वाले जहाजों के  काम आदि भी देखे जाते है,धनु या वृश्चिक का शुक्र अगर चौथे भाव में  विराजमान होता है,तो जातक को हवाई जहाजों के अन्दर और अंतरिक्ष के अन्दर भी  सफ़ल होता देखा गया है।
पंचम भाव में शुक्र
पंचम भाव का शुक्र कविता करने के लिये अधिक प्रयुक्त माना जाता  है,चन्द्रमा की राशि कर्क से दूसरा होने के कारण जातक भावना को बहुत ही सजा  संवार कर कहता है,उसके शब्दों के अन्दर शैरो शायरी की पुटता का महत्व अधिक  रूप से देखा जाता है,अपनी भावना के चलते जातक पूजा पाठ से अधिकतर दूर ही  रहता है,उसे शिक्षा से लेकर अपने जीवन के हर पहलू में केवल भौतिकता का  महत्व ही समझ में आता है,व्ह जो सामने है,उसी पर विश्वास करना आता है,आगे  क्या होगा उसे इस बात का ख्याल नही आता है,वह किसी भी तरह पराशक्ति को एक  ढकोसला समझता है,और अक्सर इस प्रकार के लोग अपने को कम्प्यूटर वाले खेलों  और सजावटी सामानों के द्वारा धन कमाने की फ़िराक में रहते है,उनको भगवान से  अधिक अपने कलाकार दिमाग पर अधिक भरोशा होता है,अधिकतर इस प्रकार के जातक  अपनी उम्र की आखिरी मंजिल पर किसी न किसी कारण अपना सब कुछ गंवाकर भिखारी  की तरह का जीवन निकालते देखे गये है,उनकी औलाद अधिक भौतिकता के कारण  मानसिकता और रिस्तों को केवल संतुष्टि का कारण ही समझते है,और समय के रहते  ही वे अपना मुंह स्वाभाविकता से फ़ेर लेते हैं।
छठे भाव में शुक्र
छठा भाव कालपुरुष के अनुसार बुध का घर माना जाता है,और कन्या राशि का  प्रभाव होने के कारण शुक्र इस स्थान में नीच का माना जाता है,अधिकतर छठे  शुक्र वाले जातकों के जीवन साथी मोटे होते है,और आराम तलब होने के कारण छठे  शुक्र वालों को अपने जीवन साथी के सभी काम करने पडते है,इस भाव के जातकों  के जीवन साथी किसी न किसी प्रकार से दूसरे लोगों से अपनी शारीरिक काम  संतुष्टि को पूरा करने के चक्कर में केवल इसी लिये रहते है,क्योंकि छठे  शुक्र वाले जातकों के शरीर में जननांग सम्बन्धी कोई न कोई बीमारी हमेशा बनी  रहती है,चिढचिढापन और झल्लाहट के प्रभाव से वे घर या परिवार के अन्दर एक  प्रकार से क्लेश का कारण भी बन जाते है,शरीर में शक्ति का विकास नही होने  से वे पतले दुबले शरीर के मालिक होते है,यह सब उनकी माता के कारण भी माना  जाता है,अधिकतर छठे शुक्र के जातकों की माता सजने संवरने और अपने को  प्रदर्शित करने के चक्कर में अपने जीवन के अंतिम समय तक प्रयासरत रहतीं है।  पिता के पास अनाप सनाप धन की आवक भी रहती है,और छठे शुक्र के जातकों के एक  मौसी की भी जीवनी उसके लिये महत्वपूर्ण होती है,माता के खानदान से कोई न  कोई कलाकार होता है, या मीडिया आदि में अपना काम कर रहा होता है।
सप्तम भाव में शुक्र
सप्तम भाव में शुक्र कालपुरुष की कुन्डली के अनुसार अपनी ही राशि तुला  में होता है,इस भाव में शुक्र जीवन साथी के रूप में अधिकतर मामलों में तीन  तीन प्रेम सम्बन्ध देने का कारक होता है,इस प्रकार के प्रेम सम्बन्ध उम्र  की उन्नीसवीं साल में,पच्चीसवीं साल में और इकत्तीसवीं साल में शुक्र के  द्वारा प्रदान किये जाते है,इस शुक्र का प्रभाव माता की तरफ़ से उपहार में  मिलता है,माता के अन्दर अति कामुकता और भौतिक सुखों की तरफ़ झुकाव का परिणाम  माना जाता है,पिता की भी अधिकतर मामलों में या तो शुक्र वाले काम होते  है,अथवा पिता की भी एक शादी या तो होकर छूट गयी होती है,या फ़िर दो सम्बन्ध  लगातार आजीवन चला करते है,सप्तम भाव का शुक्र अपने भाव में होने के कारण  महिला मित्रों को ही अपने कार्य के अन्दर भागीदारी का प्रभाव देता है।  पुरुषों को सुन्दर पत्नी का प्रदायक शुक्र पत्नी को अपने से नीचे वाले  प्रभावों में रखने के लिये भी उत्तरदायी माना जाता है,इस भाव का शुक्र  उदारता वाली प्रकृति भी रखता है,अपने को लोकप्रिय भी बनाता है,लेकिन लोक  प्रिय होने में नाम सही रूप में लिया जाये यह आवश्यक नही है,कारण यह शुक्र  कामवासना की अधिकता से व्यभिचारी भी बना देता है,और दिमागी रूप से चंचल भी  बनाता है,विलासिता के कारण जातक अधिकतर मामलों में कर्म हीन होकर अपने को  उल्टे सीधे कामों मे लगा लेते है।
आठवें भाव में शुक्र
आठवें भाव का शुक्र जातक को विदेश यात्रायें जरूर करवाता है,और अक्सर  पहले से माता या पिता के द्वारा सम्पन्न किये गये जीवन साथी वाले रिस्ते दर  किनार कर दिये जाते है,और अपनी मर्जी से अन्य रिस्ते बनाकर माता पिता के  लिये एक नई मुसीबत हमेशा के लिये खडी कर दी जाती है। जातक का स्वभाव तुनक  मिजाज होने के कारण माता के द्वारा जो शिक्षा दी जाती है वह समाज विरोधी ही  मानी जाती है,माता के पंचम भाव में यह शुक्र होने के कारण माता को सूर्य  का प्रभाव देता है,और सूर्य शुक्र की युति होने के कारण वह या तो राजनीति  में चली जाती है,और राजनीति में भी सबसे नीचे वाले काम करने को मिलते  है,जैसे साफ़ सफ़ाई करना आदि,माता की माता यानी जातक की नानी के लिये भी यह  शुक्र अपनी गाथा के अनुसार वैध्वय प्रदान करता है,और उसे किसी न किसी  प्रकार से शिक्षिका या अन्य पब्लिक वाले कार्य भी प्रदान करता है,जातक को  नानी की सम्पत्ति बचपन में जरूर भोगने को मिलती है,लेकिन बडे होने के बाद  जातक मंगल के घर में शुक्र के होने के बाद या तो मिलट्री में जाता है,या  फ़िर किसी प्रकार की सजावटी टेकनोलोजी यानी कम्प्यूटर और अन्य आई टी वाली  टेकनोलोजी में अपना नाम कमाता है। लगातार पुरुष वर्ग कामुकता की तरफ़ मन  लगाने के कारण अक्सर उसके अन्दर जीवन रक्षक तत्वों की कमी हो जाती है,और वह  रोगी बन जाता है,लेकिन रोग के चलते यह शुक्र जवानी के अन्दर किये गये  कामों का फ़ल जरूर भुगतने के लिये जिन्दा रखता है,और किसी न किसी प्रकार के  असाध्य रोग जैसे तपेदिक या सांस की बीमारी देता है,और शक्तिहीन बनाकर  बिस्तर पर पडा रखता है। इस प्रकार के पुरुष वर्ग स्त्रियों पर अपना धन  बरबाद करते है,और स्त्री वर्ग आभूषणो और मनोरंजन के साधनों तथा महंगे  आवासों में अपना धन व्यय करती है।
नवें भाव का शुक्र
नवें भाव का मालिक कालपुरुष के अनुसार गुरु होता है,और गुरु के घर में  शुक्र के बैठ जाने से जातक के लिये शुक्र धन लक्ष्मी का कारक बन जाता  है,उसके पास बाप दादा के जमाने की सम्पत्ति उपभोग करने के लिये होती है,और  शादी के बाद उसके पास और धन बढने लगता है,जातक की माता को जननांग सम्बन्धी  कोई न कोई बीमारी होती है,और पिता को मोटापा यह शुक्र उपहार में प्रदान  करता है,बाप आराम पसंद भी होता है,बाप के रहते जातक के लिये किसी प्रकार की  धन वाली कमी नही रहती है,वह मनचाहे तरीके से धन का उपभोग करता है,इस  प्रकार के जातकों का ध्यान शुक्र के कारण बडे रूप में बैंकिंग या धन को धन  से कमाने के साधन प्रयोग करने की दक्षता ईश्वर की तरफ़ से मिलती है,वह  लगातार किसी न किसी कारण से अपने को धनवान बनाने के लिये कोई कसर नही छोडता  है। उसके बडे भाई की पत्नी या तो बहुत कंजूस होती है,या फ़िर धन को समेटने  के कारण वह अपने परिवार से बिलग होकर जातक का साथ छोड देती है,छोटे भाई की  पत्नी भी जातक के कहे अनुसार चलती है,और वह हमेशा जातक के लिये भाग्य बन कर  रहती है,नवां भाव भाग्य और धर्म का माना जाता है,जातक के लिये लक्ष्मी ही  भगवान होती है,और योग्यता के कारण धन ही भाग्य होता है। जातक का ध्यान धन  के कारण उसकी रक्षा करने के लिये भगवान से लगा रहता है,और वह केवल पूजा पाठ  केवल धन को कमाने के लिये ही करता है। सुखी जीवन जीने वाले जातक नवें  शुक्र वाले ही देखे गये है,छोटे भाई की पत्नी का साथ होने के कारण छोटा भाई  हमेशा साथ रहने और समय समय पर अपनी सहायता देने के लिये तत्पर रहता है।
दसम भाव का शुक्र
दसम भाव का शुक्र कालपुरुष की कुन्डली के अनुसार शनि के घर में विराजमान  होता है,पिता के लिये यह शुक्र माता से शासित बताया जाता है,और माता के  लिये पिता सही रूप से किसी भी काम के अन्दर हां में हां मिलाने वाला माना  जाता है।छोटा भी कुकर्मी बन जाता है,और बडा भाई आरामतलब बन जाता है। जातक  के पास कितने ही काम करने को मिलते है,और बहुत सी आजीविकायें उसके आसपास  होती है। अक्सर दसवें भाव का शुक्र दो शादियां करवाता है,या तो एक जीवन  साथी को भगवान के पास भेज देता है,अथवा किसी न किसी कारण से अलगाव करवा  देता है। जातक के लिये एक ही काम अक्सर परेशान करने वाला होता है,कि कमाये  हुये धन को वह शनि वाले नीचे कामों के अन्दर ही व्यय करता है,इस प्रकार के  जातक दूसरों के लिये कार्य करने के लिये साधन जुटाने का काम करते है,दसवें  भाव के शुक्र वाले जातक महिलाओं के लिये ही काम करने वाले माने जाते है,और  किसी न किसी प्रकार से घर को सजाने वाले कलाकारी के काम,कढाई  कशीदाकारी,पत्थरों को तरासने के काम आदि दसवें भाव के शुक्र के जातक के पास  करने को मिलते है।
ग्यारहवें भाव का शुक्र
ग्यारहवां भाव संचार के देवता यूरेनस का माना जाता है,आज के युग में  संचार का बोलबाला भी है,मीडिया और इन्टरनेट का कार्य इसी शुक्र की बदौलत  फ़लीभूत माना जाता है,इस भाव का शुक्र जातक को विजुअल साधनों को देने में  अपनी महारता को दिखाता है,जातक फ़िल्म एनीमेशन कार्टून बनाना कार्टून फ़िल्म  बनाना टीवी के लिये काम करना,आदि के लिये हमेशा उत्साहित देखा जा सकता है।  जातक के पिता की जुबान में धन होता है,वह किसी न किसी प्रकार से जुबान से  धन कमाने का काम करता है,जातक का छोटा भाई धन कमाने के अन्दर प्रसिद्ध होता  है,जातक की पत्नी अपने परिवार की तरफ़ देखने वाली होती है,और जातक की कमाई  के द्वारा अपने मायके का परिवार संभालने के काम करती है। जातक का बडा भाई  स्त्री से शासित होता है,जातक के बडी बहिन होती है,और वह भी अपने पति को  शासित करने में अपना गौरव समझती है। जातक को जमीनी काम करने का शौक होता  है,वह खेती वाली जमीनों को सम्भालने और दूध के काम करने के अन्दर अपने को  उत्साहित पाता है,जातक की माता का स्वभाव भी एक प्रकार से हठीला माना जाता  है,वह धन की कीमत को नही समझती है,और माया नगरी को राख के ढेर में बदलने के  लिये हमेशा उत्सुक रहती है,लेकिन पिता के भाग्य से वह जितना खर्च करती  है,उतना ही अधिक धन बढता चला जाता है।
बारहवें भाव में शुक्र
बारहवें भाव के शुक्र का स्थान कालपुरुष की कुन्डली के अनुसार राहु के  घर में माना जाता है,राहु और शुक्र दोनो मिलकर या तो जातक को आजीवन हवा में  उडाकर हवाई यात्रायें करवाया करते है,या आराम देने के बाद सोचने की क्रिया  करवाने के बाद शरीर को फ़ुलाते रहते है,जातक का मोटा होना इस भाव के शुक्र  की देन है,जातक का जीवन साथी सभी जातक की जिम्मेदारियां संभालने का कार्य  करता है,और अपने को लगातार किसी न किसी प्रकार की बीमारियों का ग्रास बनाता  चला जाता है,जातक का पिता या तो परिवार में बडा भाई होता है,और वह जातक की  माता के भाग्य से धनवान होता है,पिता का धन जातक को मुफ़्त में भोगने को  मिलता है,उम्र की बयालीसवीं साल तक जातक को मानसिक संतुष्टि नही मिलती  है,चाहे उसके पास कितने ही साधन हों,वह किसी न किसी प्रकार से अपने को  अभावग्रस्त ही मानता रहता है,और नई नई स्कीमें लगाकर बयालीस साल की उम्र तक  जितना भी प्रयास कमाने के करता है,उतना ही वह पिता का धन बरबाद करता  है,लेकिन माता के भाग्य से वह धन किसी न किसी कारण से बढता चला जाता है।  उम्र की तीसरी सीढी पर वह धन कमाना चालू करता है,और फ़िर लगातार मरते दम तक  कमाने से हार नही मानता है। जातक का बडा भाई अपने जुबान से धन कमाने का  मालिक होता है,लेकिन भाभी का प्रभाव परिवार की मर्यादा को तोडने में ही  रहता है,वह अपने को धन का दुश्मन समझती है,और किसी न किसी प्रकार से  पारिवारिक महिलाओं से अपनी तू तू में में करती ही मिलती है,उसे बाहर जाने  और विदेश की यात्रायें करने का शौक होता है,भाभी का जीवन अपनी कमजोरियों के  कारण या तो अस्पताल में बीतता है,या फ़िर उसके संबन्ध किसी न किसी प्रकार  से यौन सम्बन्धी बीमारियों के प्रति समाज में कार्य करने के प्रति मिलते  है,वह अपने डाक्टर या महिलाओं को प्रजनन के समय सहायता देने वाली होती है।  आप अन्य जानकारियों के लिये मुझे ईमेल कर सकते हैं
 
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