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Thursday, July 8, 2010

सम्पादकीय ( समीर चतुर्वेदी ) 9 जुलाई 2010

 नक्सलवाद आज देश के लिए एक बड़ी चुनौती बन चुका है . सरकार रोज नए तरीके से इसके हल होने का दावा करती है लेकिन ये आज एक ऐसी समस्या बन गयी है जिसका कोई त्वरित हल नहीं नज़र आता . आये दिन नक्सलियों द्वारा किसी न किसी घटना को अंजाम दे दिया जाता है . कभी रेल ट्रैक उडाना कभी दंतेवाड़ा जैसी घटनाओं को अंजाम देना . दरअसल सरकार अभी तक इस मुद्दे पर कोई कारगर नीति ही नहीं बना पायी है ! कोई ठोस निर्णय लेकर किसी योजना को कार्यान्वित करने के आसार भी अभी नज़र नहीं आ रहे ! महज घोषणाये और हवाई बाते हो रही है ! और दूसरी और नक्सली है जो सरकार से बात तक करने को तेयार नहीं है ! क्योकि वे जानते है आज नक्सलवाद की ज़मीन जिस पर वो खड़े है बहुत मजबूत है ! सरकार चाहे जो भी दावा करे नक्सल प्रभावित इलाको में नक्सलियों का एक बड़ा नेटवर्क और आधार है !

                      सवाल ये उठता है की ये समस्या शुरू क्यों हुई ! नक्सली, कौन है , नक्सली समस्या आखिर क्या है, और कौन है इसके जन्मदाता ? सुन के जरा अटपटा लगेगा की नक्सल समस्या को पनपने में स्थानीय पुलिस की पूरी भूमिका रही ! जब भी किसी गाँव में नक्सली कोई वारदात करते  पुलिस निचले तबके के लोगो को अपना निशाना बनाती और उन्हें बुरी तरह प्रताड़ित करती ! और ये सब गाँव के उन दबंगों के इशारे पर होता जो किसी भी कीमत पर गाँव के पिछड़े लोगो को अपने हितो की खातिर आगे नहीं आने देना चाहते थे ! हालत यहाँ तक हो गए की जब भी कोई ऐसी वारदात होती तो गाँव के इस तबके के लोग डर के मारे घर छोड़ भागने लगे ! और उनको सहारा मिलता केवल  नक्सलियों का! और जो कुछ पुलिस की पकड़ में  आते उन पर पुलिस प्रताड़ना के बाद केस भी लाद दिया जाता ! आज भी ऐसे निर्दोष लोगो की कमी नहीं जो या तो जेल में है या फिर झूठे केस भुगत रहे है ! आखिर में ऐसे दबे पिछड़े लोगो को सहारा दिया नक्सलियों ने ! आज पुलिस और प्रशासन भी मानता है नक्सलियों का लोकल कनेक्शन ही असली मुसीबत है ! और इस कनेक्शन की असली वजह खुद पुलिस ही  है जिसने ऐसा माहौल  तेयार किया !

    पिछले तीस सालो में  नक्सल का ये आन्दोलन कहाँ से कहाँ पहुँच गया और सरकारे सिर्फ कोरी घोषणा करती रही या केवल कागज पर रणनीति बनाती रही ! किसी ने नहीं सोचा की समस्या की जड़ क्या है ! पर यहाँ सोचने का समय है किसके पास ? किसको फुर्सत है जो अपने वातानुकूलित कमरों से निकल कर इस समस्या को समझे . केंद्र और राज्य की सरकारे केवल एक दुसरे पर आरोप लगा रही है ! छत्तीसगढ़ में हालात ये हैं कि यहां के कांग्रेसी प्रदेश की भाजपा सरकार को इसके लिए दोषी मानने का कोई मौका नहीं गंवा रहे हैं। कुल मिलाकर बात यह है कि एक तरफ कांग्रेसी नक्सली समस्या के लिए भाजपा को दोषी मान रहे हैं तो दूसरी तरफ भाजपाई कांग्रेस की केन्द्र सरकार को दोषी मान रहे हैं। भाजपा के दावे में इसलिए दम है क्योंकि केन्द्र के पास शुरू से नक्सली समस्या की रिपोर्ट भेजी जाती रही है और केन्द्र ने कुछ नहीं किया है।

           अब जबकि यह समस्या पूरी तरह से नासूर बन गई है तो यह वक्त एक-दूसरे पर आरोप लगाने का नहीं बल्कि इस समस्या को जड़ से समाप्त करने का है। इसके लिए देश के दोनों बड़े राजनीतिक दलों को राजनीति से ऊपर उठकर काम करना होगा तभी नक्सली समस्या से मुक्ति मिल सकेगी।जो कांग्रेस कल तक सलवा जुडूम का विरोध कर रही थी आज उसके सत्ताधीश सेना के प्रयोग पर भरोसा जताने लगे हैं,यह अपने आप में आश्चर्यजनक है. यदि पंजाब का खालिस्तानी आन्दोलन अकाली दल के राजनीतिक आन्दोलन में तब्दील हो सकता है तो नक्सलवादी किसी साम्यवादी राजनीतिक प्रक्रिया में क्यों नहीं आ सकते? नक्सलवाद को इस्लामी आतंकवाद की तर्ज पर नहीं निपटा जा सकता!  इन नक्सलवादियों के खिलाफ बेशक कड़ी कार्रवाई करें,लेकिन यह कार्रवाई करते समय ध्यान रहे कि सामान्य नक्सली देश का दुश्मन होने की बजाय व्यवस्था का दुश्मन है.

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