Top Blogs
Powered By Invesp

Saturday, July 31, 2010

सम्पादकीय ( समीर चतुर्वेदी ) 31/07/2010


               गुजरात फिर से चर्चा में है फिर एक बार तथाकथित धर्मनिरपेक्ष ताकतें नरेन्द्र मोदी पर निशाना साधे हुए हैं ! गुजरात के गृह मंत्री को सी बी आई ने हिरासत मैं ले लिया है ! आज मालूम  हुआ है की हमारे देश की यह जांच एजेंसी कितना तेज काम करती है ! और गुजरात पर निशाना लगे भी क्यों न , कितना बुरा हुआ है इस राज्य में ! एक भोले भाले गांधीवादी सोहराबुद्दीन का एन्कोउन्टर जो हुआ है ! बेचारे का कसूर क्या था ? सिर्फ 200 ए के 47 मशीनगन ही  तो मिली थी उसके कुएं  से ! सिर्फ चंद आतंकवादियों से सम्बन्ध ही तो थे उसके ! गलत किया गुजरात सरकार ने ! गलत किया वहाँ के पुलिस अधिकारियों ने ! सोहराबुद्दीन को तो देश का सर्वोच्च सम्मान देना था ! बेचारे निर्दोष को मार दिया ! आखिर वो जिन्दा रहता तो क्या करता बस चंद लोगो की जान लेने और देश में आतंकी वारदात करने वालो का हाथ ही  बटाता! आखिर है कौन ये सोहराबुद्दीन  जिसको लेकर ये सभी धर्म निरपेक्ष दलों के पेट में इतना दर्द है ? सोहराबुद्दीन मध्यप्रदेश का हिस्ट्रीशीटर था और उज्जैन जिले के झिरन्या गाँव में मिले एके 47 और अन्य ‍हथियारों में इसी का हाथ था। सोहराबुद्दीन के संपर्क छोटा दाउद उर्फ शरीफ खान से थे जो अहमदाबाद से कराची चला गया था। इसी शरीफ खान के लिए सोहराबुद्दीन मार्बल व्यापारियों से हफ्ता वसूल करता था। सीबीआई की ओर से अदालत में पेश आरोप पत्र में कहा गया कि राजसमंद स्थित आर.के. मारबल तथा भीलवाड़ा स्थित संगम टेक्सटाइल से सोहराबुद्दीन अवैध उगाही करता था! 6 नवंबर 2005 को गुजरात में अपराध की दुनिया में तेजी से पैठ बना चुके सोहराबुद्दीन शेख को पुलिस ने एक मुठभेड़ में मार गिराया था
                अब बात आती है सोहराबुद्दीन के एनकाउन्टर की , गुजरात सरकार के मंत्री अमित शाह को  सी बी आई ने हिरासत में ले लिया आखिर ऐसी क्या जल्दी थी जो अमित शाह को एक ही दिन में दो समन भेजे गए और कैसे दो दिन के अन्दर तीन हजार पेज की चार्ज शीट पेश कर दी गयी ! दरअसल यदि मरने वाला सोहराबुद्दीन नहीं होता तो शायद इतनी चिल्लपों नहीं होती ! आज सरकार के पिछलग्गू मीडिया भी इस काण्ड को सोहराबुद्दीन काण्ड बोलती दिख रही है !  सोहराबुद्दीन और कौसर बी के अलावा मरने वाले तुलसी प्रजापति का नाम किसी को याद क्यों नहीं रहता ! फर्क शायद सब समझ सकते हैं ! लगता है कांग्रेस की दृष्टि में आतंकवादी का मसला अल्पसंख्यक से भी जुड़ा हुआ है। जब कोई आतंकवादी मरता है तो कांग्रेस का अल्पसंख्यक सैल तुरंत जीवित हो जाता है। उसको लगता है यह आतंकवादी नहीं मरा बल्कि एक बदनसीब अल्पसंख्यक को गोली मार दी गई है। शायद सरकार  यह मानती है कि सच्चा आतंकवादी होने के लिए जरूरी है पहले आतंकवादी अपनी ए.के. -47 से कुछ लोगो  को मार गिराए। उसके बाद पुलिस उन आतंकवादियों को पकड़े और पकड़ने के बाद उस पर मुकदमा चलाए। मुकदमा में यदि इनको फांसी की सजा हो जाए तो उस पर दया की अपील करते हुए राष्ट्रपति के पास आवेदन भेजा जाए और वह आवेदन परंपरागत तरीके से लंबित हो जाए। लेकिन  आतंकवादियों को कानूनी प्रक्रिया के चलते फांसी की सजा हो गई हो और सचमुच ही उनको फांसी के तख्ते पर चढ़ा दिया हो अभी तक ऐसा देश के देखने में नहीं आया है।किन्तु सवाल यह है कि जिस अपराध मे अमित शाह के खिलाफ कांग्रेसी फांसी का फंदा लेकर घूम रहे हैं आखिर वह है क्या? फेक एनकाउंटर। फेक की बात तो बाद में करेंगे पहले एनकाउंटर यानि मुठभेड़ का मतलब समझना जरूरी है। एनकाउंटर का मतलब समाज के ऐसे तत्वों को देखते ही गोली मार देना है जो अपने आपराधिक कृत्यों से आम जनता में भय का वातावरण पैदा कर दिए हों और जिनके खिलाफ कोई गवाही देने वाला न मिले जिससे कि आपराधिक दण्ड प्रक्रिया के तहत उस पर राज्य सरकार नियंत्रण न कर सके। इसी के तहत पंजाब की कांग्रेसी बेअंत सिंह सरकार ने भी आतंकवादियों के खिलाफ अभियान चलाया। दोनों जगह सफलताएं भी मिलीं। लेकिन वही एनकाउंटर गुजरात में फेक यानि फर्जी हो जाता है।
            दिल्ली सहित देश के कई राज्यों में एनकाउंटर हुए उनमें से कुछ निर्दोष भी मारे गए। पुलिस ने जिस किसी निर्दोष को मारा वह तो फेक एनकाउंटर (फर्जी मुठभेड़) ही माना जाएगा किन्तु देश में आज तक फेक एनकाउंटर के लिए किसी गृहमंत्री के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज नहीं हुआ है। दिल्ली में भी कनॉट प्लेस में फेक एनकाउंटर हुआ था किन्तु उसके आरोप में तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज नहीं हुई थी। हो भी नहीं सकती। यदि  शिकायतों का परीक्षण किया जाए तो फेक एनकाउंटर जुर्म में कई राज्यों के गृहमंत्री और आईपीएस अधिकारी जेल में ही मिलेंगे !  खैर गुजरात में आतंकवादी घटनाओ की कोई खबर नहीं आती यदि आम आदमी से पूछा जाए तो वो यही कहेगा की वहाँ की पुलिस सख्त है और खुफिया तंत्र दुरुस्त है !लेकिन कुछ लोगो  के लिए इसका दूसरा अर्थ है। यदि आतंकवादियों को काम करने का मौका नहीं दिया जा रहा तो इसका अर्थ है कि गुजरात सरकार आतंकवादियों के मानवाधिकारों का हनन कर रही है।सबसे  बड़ा प्रश्न यह है कि सोहराबुद्दीन के पक्ष में खड़े होने वाले लोग कौन है? और उनकी मंशा क्या है?

2 comments:

  1. इस सुंदर से नए चिट्ठे के साथ आपका हिंदी ब्‍लॉग जगत में स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

    ReplyDelete
  2. संगीता जी आपकी शुभकामनाओ का धन्यवाद ये मेरा सौभाग्य है की आपने मेरा ब्लॉग पढ़ा और उस पर अपने विचार दिए ! आपका आशीर्वाद सदैव मेरे लिए सफलता की कुंजी रहेगा !

    ReplyDelete